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* एक बार अयोध्या में राघवेंद्र भगवान श्रीराम ने अपने पितरों का श्राद्ध करने के लिए ब्राह्मण-भोजन का आयोजन किया। ब्राह्मण-भोजन में सम्मिलित होने के लिए दूर-दूर से ब्राह्मणों की टोलियां आने लगीं । भगवान शंकर को जब यह मालूम हुआ तो वे कौतुहलवश एक वृद्ध ब्राह्मण का रूप धर कर ब्राह्मणों की टोली में शामिल होकर वहां पहुंच गए और श्रीरामजी से बोले—‘मुझे भी भोजन करना है।’
अन्तर्यामी भगवान श्रीराम बूढ़े ब्राह्मण को पहचान गए और समझ गए कि भगवान शंकर ही मेरी परीक्षा करने यहां पधारे हैं । ब्राह्मण-भोजन के लिए जैसे ही पंगत पड़ी, भगवान श्रीराम ने स्वयं उस वृद्ध ब्राह्मण के चरणों को अपने करकमलों से धोया और आसन पर बिठाकर भोजन-सामग्री परोसना शुरु कर दिया । छोटे भाई लक्ष्मणजी भगवान शंकर को जो भी वस्तु परोसते, शंकरजी उसे एक ही ग्रास में खत्म कर देते । उनकी पत्तल पर कोई सामान बचता ही नहीं था । सभी परोसने वाले उस बूढ़े ब्राह्मण की पत्तल में सामग्री भरने में लग गए, पर पत्तल तो खाली-की-खाली ही नजर आती। श्रीरामजी मन-ही-मन मुस्कराते हुए शंकरजी की यह लीला देख रहे थे।
भोजन समाप्त होते देख महल में चिंता होने लगी गयी । माता सीता के पास भी यह समाचार पहुंचा कि श्राद्ध में एक ऐसे वृद्ध ब्राह्मण पधारे हैं, जिनकी पत्तल पर सामग्री परोसते ही साफ हो जाती है। श्राद्ध में आमन्त्रित सभी ब्राह्मणों को भोजन कराना भगवान श्रीराम की प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया। माता सीता भी चिन्तित होने लगीं।
जब बनाया गया सारा भोजन समाप्त हो गया फिर भी शंकरजी तृप्त नहीं हुए तो श्रीराम ने माता अन्नपूर्णा का स्मरण कर उनका आह्वान किया । सभी परोसने वाले व्यक्ति वहां से हटा दिये गये । माता अन्नपूर्णा वहां प्रकट हो गयीं ।
शंकरजी की क्षुधा केवल माता अन्नपूर्णा ही कर सकती हैं शान्त!!!!!!
श्रीरामजी ने माता अन्नपूर्णा से कहा—‘अपने स्वामी को आप ही भोजन कराइए, इन्हें आपके अतिरिक्त और कोई तृप्त नहीं कर सकता है ।’
मां अन्नपूर्णा ने जब अपने हाथ में भोजन पात्र लिया तो उसमें भोजन अक्षय हो गया । अब वे स्वयं विश्वनाथ को भोजन कराने लगीं । मां अन्नपूर्णा ने पत्तल में एक लड्डू परोसा । भगवान विश्वनाथ खाते-खाते थक गये पर वह समाप्त ही नहीं होता था । मां ने दोबारा परोसना चाहा तो भगवान शंकर ने मना कर दिया । शंकरजी हंसते हुए डकार लेने लगे और बोले—‘तुम्हें आना पड़ा, अब तो मैं तृप्त हो गया ।’
* मां अन्नपूर्णा काशी की अधीश्वरी हैं इसलिए वहां एक कहावत प्रचलित है—
‘बाबा-बाबा सब कहै, माई कहे न कोय।
बाबा के दरबार में माई कहैं सो होय ।।
🙏💕जय सियाराम🌹🙇
🚩🔱हर हर महादेव🔱🚩
बॉलीवुड में हर साल कई फिल्में बनती हैं जो बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप हो जाती हैं लेकिन कई सालों बाद ओटीटी और सिटकॉम के जरिए उन्हें प्यार मिलता है कई फिल्मों को अपनी जगह बनाने और क्लासिक बनने में सालों का वक्त लग जाता है ऐसी ही एक छोटी बजट की फिल्म जिसमें कोई सुपरस्टार नहीं था बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं हुई लेकिन बाद में इसे कल्ट का दर्जा मिला हम जिस फिल्म की बात कर रहे हैं उसे बनने में 21 साल लग गए निर्माताओं ने इसे बनाने से मना कर दिया जैसे तैसे बनी मगर सिनेमाघरों में नहीं चली फिर ओटीटी पर हिट हो गई यह फिल्म कोई और नहीं बल्कि तुम्बाड है आजतक को दिए इंटरव्यू में सोहम ने बताया कि फिल्म को पूरा करने के लिए उन्होंने अपना घर और कार तक बेच दी जब तक फिल्म बनी मैं आर्थिक रूप से थक चुका था इन सात सालों में मुझे अपना फ्लैट बेचना पड़ा फिर कुछ और प्रॉपर्टी बेचनी पड़ी और आखिरकार अपनी कार भी बेचनी पड़ी फिर फिल्ममेकर आनंद एल राय ने फिल्म को प्रोड्यूस किया और आखिरकार 2018 में इसे रिलीज किया गया 5 करोड़ रुपये में बनी इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिर्फ 13 करोड़ रुपये कमाए हालांकि जब यह ओटीटी पर आई तो इसने सभी का दिल जीत लिया और हिट हो गई अब फिल्म को फिर से सिनेमाघरों में रिलीज किया गया है पिछले कुछ सालों में बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप होने के बावजूद इस फिल्म ने कल्ट स्टेटस हासिल कर लिया है