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भविष्य के प्रधानमंत्री बुलडोजर बाबा योगी जी 🔥

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अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं॥
प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे॥

भावार्थ :- हे अनुपम सुंदर! हे पृथ्वीपति! हे जानकीनाथ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मुझ पर प्रसन्न होइए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मुझे अपने चरण कमलों की भक्ति दीजिए।

॥ “ जय श्री राम ” ॥

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अनूप रूप भूपतिं। नतोऽहमुर्विजा पतिं॥
प्रसीद मे नमामि ते। पदाब्ज भक्ति देहि मे॥

भावार्थ :- हे अनुपम सुंदर! हे पृथ्वीपति! हे जानकीनाथ! मैं आपको प्रणाम करता हूँ। मुझ पर प्रसन्न होइए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। मुझे अपने चरण कमलों की भक्ति दीजिए।

॥ “ जय श्री राम ” ॥

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"मुझे भी अम्बानी के बेटे अनंत की शादी में जाना है"

- सड़ जी

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मन्दिर क्या देगा, कुछ भी नहीं.. पर यहां आने से संबंध मजबूत होने पर बहुत कुछ मिलने की उम्मीद है!!

शायद इसकी यही सोच इसे यहां ले आयी और मन्दिर जाने में रुकावट बन गई!!

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वीर सावरकर ❤️

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🌹श्री सत्यनारायण कथा🌹पांच अध्याय🌹
शास्त्रों में बताया गया है कि सत्यनारायण व्रत कथा का पाठ करने से व्यक्ति को हजार यज्ञ करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है। इस व्रतकथा में भगवान विष्णु के सत्य स्वरूप के बारे में बताया गया है। इस व्रत का पाठ करने से घर में सुख समृद्धि का वास होता है और भगवान विष्णु की कृपा बना रहती है। तो आईए इस कथा का प्रारंभ करते हैं कृपया इस कथा के अंत तक बन रहे।
श्री सत्यनारायण कथा - प्रथम अध्याय
एक समय की बात है नैषिरण्य तीर्थ में शौनिकादि, अठ्ठासी हजार ऋषियों ने श्री सूतजी से पूछा हे प्रभु! इस कलियुग में वेद विद्या रहित मनुष्यों को प्रभु भक्ति किस प्रकार मिल सकती है? तथा उनका उद्धार कैसे होगा? हे मुनि श्रेष्ठ ! कोई ऐसा तप बताइए जिससे थोड़े समय में ही पुण्य मिलें और मनवांछित फल भी मिल जाए। इस प्रकार की कथा सुनने की हम इच्छा रखते हैं।
सर्व शास्त्रों के ज्ञाता सूत जी बोले - हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सभी ने प्राणियों के हित की बात पूछी है इसलिए मैं एक ऐसे श्रेष्ठ व्रत को आप लोगों को बताऊँगा जिसे नारद जी ने लक्ष्मीनारायण जी से पूछा था और लक्ष्मीपति ने मुनिश्रेष्ठ नारद जी से कहा था। आप सब इसे ध्यान से सुनिए -
एक समय की बात है, योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा लिए अनेकों लोको में घूमते हुए मृत्युलोक में आ पहुँचे। यहाँ उन्होंने अनेक योनियों में जन्मे प्राय: सभी मनुष्यों को अपने कर्मों द्वारा अनेकों दुखों से पीड़ित देखा। उनका दुःख देख नारद जी सोचने लगे कि कैसा यत्न किया जाए जिसके करने से निश्चित रुप से मानव के दुखों का अंत हो जाए। इसी विचार पर मनन करते हुए वह विष्णुलोक में गए। वहाँ वह देवों के ईश भगवान् नारायण की स्तुति करने लगे जिनके हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म थे, गले में वरमाला पहने हुए थे।
स्तुति करते हुए नारद जी बोले - हे भगवान! आप अत्यंत शक्ति से संपन्न हैं, मन तथा वाणी भी आपको नहीं पा सकती हैं। आपका आदि, मध्य तथा अंत नहीं है। निर्गुण स्वरुप सृष्टि के कारण भक्तों के दुःख को दूर करने वाले, आपको मेरा नमस्कार है।
नारद जी की स्तुति सुन विष्णु भगवान बोले - हे मुनिश्रेष्ठ! आपके मन में क्या बात है? आप किस काम के लिए पधारे हैं? उसे नि:संकोच कहो। इस पर नारद मुनि बोले कि मृत्युलोक में अनेक योनियों में जन्मे मनुष्य अपने कर्मों के द्वारा अनेको दुःख से दुखी हो रहे हैं। हे नाथ! आप मुझ पर दया रखते हैं तो बताइए कि वो मनुष्य थोड़े प्रयास से ही अपने दुखों से कैसे छुटकारा पा सकते हैं।
श्रीहरि बोले - हे नारद! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिसके करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है, वह बात मैं कहता हूँ उसे सुनो। स्वर्ग लोक व मृत्युलोक दोनों में एक दुर्लभ उत्तम व्रत है जो पुण्य देने वाला है। आज प्रेमवश होकर मैं उसे तुमसे कहता हूँ। श्रीसत्यनारायण भगवान का यह व्रत अच्छी तरह विधानपूर्वक करके मनुष्य तुरंत ही यहाँ सुख भोग कर, मरने पर मोक्ष पाता है।
श्रीहरि के वचन सुन नारद जी बोले कि उस व्रत का फल क्या है? और उसका विधान क्या है? यह व्रत किसने किया था? इस व्रत को किस दिन करना चाहिए? सभी कुछ विस्तार से बताएँ।

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श्री सीताराम

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