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शीतयुद्ध के समय से अमेरिका ने बुद्धजीवों कि फ़ौज खड़ी कि है।
जो मीडिया , यूनिवर्सिटी , फ़िल्म आदि में भरे पड़े है।
अन्य देशों में उन्होंने पुरस्कार देकर , NGO, महत्वाकांक्षी नेताओं के माध्यम से अपना नेरेटिव बनाने के लिये इस्तेमाल कर किया। इसके लिये अकूत धन का प्रयोग होता है।
पिछले कई वर्षों से भारत के विरुद्ध भी यह अभियान चलाया गया है।
हिंदुत्व ! को केंद्र में रखकर यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर सम्मेलन करते है। अल्पसंख्यको को मुद्दा बनाकर एक अस्थिर , कट्टर राष्ट्र के रूप स्थापित करने का प्रयास होते रहते है।
अमेरिका से तीन गुनी जनसंख्या वाले भारत में इतने दंगें नहीं होते जितने अमेरिका में बंदूकधारी लोगों को मार देते है।
विदेश में रहने वाले खालिस्तानी , कश्मीरी उनके लिये उपयोगी होते है।
BBC , अलजजीरा , न्यूयॉर्क टाइम्स । भारत में NDTV , प्रिंट ,वायर जैसे पोर्टल राष्ट्र को बदनाम करते है।
नपुंसक हो चुका यूरोप , अमेरिका का पिछलग्गू है। ब्रिटेन की अस्मिता खत्म हो चुकी है वह बोलेगा जो अमेरिका कहता है।
राष्ट्र के विभाजन के समय यह धारणा थी कि पाकिस्तान एक दिन भारत के सामने नतमस्तक होगा। 1965 के युद्ध के पूर्व तक भारत पाकिस्तान की सीमाएं खुली हुई थी।
लेकिन पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति का लाभ लेने के लिये। अमेरिका ने उसे मिलिट्राइज़ किया। ट्रम्प ने स्प्ष्ट शब्दो मे कहा था , अमेरिका ने 800 अरब डॉलर पाकिस्तान को दिये।
यह धन , भारत के विदेशी मुद्रा भंडार से भी अधिक है।
अपने हित के लिये अमेरिका , विश्व को अस्थिर करता रहा है। एक समय यूक्रेन कि 70 % जनता रूस कि समर्थक थी। यूक्रेन कभी सोवियत संघ का आर्थिक केंद्र था।
लेकिन पिछले 10 -15वर्षों से अमेरिका , यूरोप के बुद्धजीवी , मीडिया वहाँ की जनता को रूस विरोधी बना दिये।
उपर से एक लँगूर राष्ट्रपति का चुनाव वहाँ यूक्रेन कि जनता ने किया।
ऐसा हम भी करते है।
उत्तरप्रदेश में हर व्यक्ति जानता है कि सुरक्षा , विकास में आज प्रदेश कितना आगे है।
लेकिन लोकतंत्र में एक ही परिवार के 34 लोग ब्लाक प्रमुख से लेकर मुख्यमंत्री तक के पद में रहे है। वह चुनौती दे रहे है।
मुद्दे की बात यह है कि यूक्रेन पर हमला रसिया ने नहीं।पुतिन ने किया है। कोई अन्य राष्ट्रपति होता तो सम्भवतः ऐसा बल प्रयोग न कर पाता।
यहाँ यूक्रेन और रूस में जो अंतर है। वह नेतृत्व का अंतर है।
राष्ट्राध्यक्ष से लेकर सामान्य व्यक्ति तक यदि दूसरों के इशारे पर काम करने लगेगा तो कभी भी शुभ नहीं हो सकता।
इस पूरे घटनाक्रम से हमारे लिये यही है। हमारे विचारों का केंद्र राष्ट्र होना चाहिये।
राष्ट्र ही तुला है ! राजनीति , धर्म सभी के लिये।
आने वाली अंनत पीढ़ियां बंकरों , शरणार्थी शिविरों में पनाह न ले, इसके लिये आवश्यक है कि अपने विचारों को राष्ट्र की तुला पर तौलते रहे।।