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क्या वामपंथी इतिहासकार इन तीन सवालों का जवाब देंगे ?
1-क्या चेहरे पर छेनी हथौड़ी का निशान छोड़े बिना ऐसी चिकनी सतह का निर्माण सम्भव है ?
2-क्या शिल्पकारों को महीनों की मेहनत के बाद एक बारीक नक्काशी पर हथौड़ी के गलत प्रहार से पूरी प्रतिमा की सुंदरता पर प्रभाव पड़ने का डर नहीं था ?
3-अगर छेनी-हथौड़ी से ऐसी प्रतिमाएं सम्भव हैं तो आज आधुनिक उपकरणों के बावजूद ऐसी प्रतिमाओं का निर्माण क्यों नहीं किया जा सका ?
जब तक हमारी किताबें वामपंथी इतिहासकारों के पिजड़े से आजाद नहीं होंगी हम अपना वास्तविक इतिहास नहीं जान सकते ।
साभार
(चेन्नकेशवा मंदिर, कर्नाटक)
#जय_सनातन?????

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