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यूं ही नहीं मान्यता है #बिंदी की
स्त्री में छुपे #भद्रकाली के रूप को शांत करती है
यूं ही नहीं लगाती है #काजल
#नकारात्मकता निषेध हो जाती है
जिस आंगन स्त्री आंखों में #काजल लगाती है
#होंठों को रंगना कोई #आकर्षण नहीं
प्रेम की #अद्भुत_पराकाष्ठा को चिन्हित करती हुई
जीवन में रंग बिखेरती है
#नथ पहनती है
तो #करुणा का सागर हो जाती है
और #कानों में कुंडल पहनती है
तो #संवेदनाओं का सागर बन जाती है
#चूड़ियों में अपने #परिवार को बांधती है
इसीलिए तो एक भी #चूड़ी मोलने नहीं देती
#पाजेब की #खनक सी मचलती है
प्रेम में जैसे #मछली हो जाती है
#स्त्री है साहब... स्वयं में #ब्रह्मांड लिए चलती है...✍️

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