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कभी कभी सोचता हूँ, हमारा समाज कितना सहिष्णु है,
जो किसी से कुछ उम्मीद किए बिना
अपनी आस्था को हजारो वर्षों से जीता आ रहा है..
बल्कि उपहास उड़ाया जाता है
कितनी ही अड़चनें डाली जाती हैं हर त्यौहार में..
नमन है आस्थाओं के पर्वों की
नमन है आस्थाओं को जो अगली पीढ़ियों को
विरासत में सौंपते हैं..
जय छठी मैया
जय सनातन संस्कृति..

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