1855 में नैनी और तत्कालीन इलाहाबाद के बीच पुल बनाने का स्थान चिन्हित हुआ । इसी बीच 1857 की क्रांति के बाद देश में कंपनी शासन खत्म हुआ । गवर्नर जनरल लार्ड कैनिंग ने एक महीने के लिए काम को रोक दिया और किले के माध्यम से या उसके पास लाइन को सीधे इलाहाबाद से जोड़ने को कहा । 1859 से युद्ध स्तर पर कार्य शुरू हुआ और छह साल में पुल बनकर तैयार हुआ ।
- 15 जुलाई 1865 को पुल पर पहली ट्रेन चली ।
- 8 अगस्त को गर्डों का परीक्षण हुआ ।
-15 अगस्त को जनता के लिए पुल खुला ।
1861 से 1864 तक नदी में बाढ़ का रिकार्ड मुख्य अभियंता सिबली ने दर्ज किया ।
- 3150 फीट पुल की लंबाई , 200 फीट के 14 व 60 फीट के 2 स्पैन ( पिलर ) हैं ।
- 42 फीट की नींव , 58.75 फीट गर्डर के नीचे की ऊंचाई , गर्डर का वजन 4300 टन है
-5 मिलियन क्यूबिक फीट चिनाई और ईंट का इस्तेमाल हुआ
- 4446300 रुपये की लागत , जिसमें से 1463300 केवल गर्डों का मूल्य |

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