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"राम सीता का प्रेम"
वनवास के दौरान एक दिन सूखी लकड़ियाँ तोड़ते हुए राम की दाहिनी हथेली में खरोंच लग गई जिससे खून निकलने लगा।
अपनी कुटिया में आकर उन्होंने सीता को दिखाया तो सीता ने घाव पर कपड़ा बाँध दिया। उस दिन भोजन के समय राम हाथ से फल खाने लगे तो खाने में हो रही असुविधा को देेेेख सीता ने अपने हाथों से उन्हें फल खिलाना शुरू किया।
एक सप्ताह तक लगातार सीता ने यह क्रम जारी रखा। फिर उन्हें आश्चर्य हुआ कि अब तक तो घाव से राहत मिल जानी चाहिए लेकिन अब भी पतिदेव हाथ में कपड़ा बाँधे रहते हैं। इस दौरान कई बार सीता ने राम से कहा कि मुझे दिखाइये कि घाव सूख रहा है कि नहीं, लेकिन राम ने कभी हथेली पर बँधा कपड़ा नहीं उतारा।
एक दिन सोेेते समय सीता ने चुपके से राम की हथेली पर बँधा कपड़ा खोल दिया। वो ये देख दंग रह गईं कि राम का घाव ठीक हो गया था।
अगले दिन सीता ने राम के आगे फल रख दिये और कुछ दूर बैठ गईं। राम सीता की ओर देखते रहे कि रोज की तरह ये मुझे अपने हाथों से खिलायेंगी।
सीता ने उनकी उम्मीद भरी नजरों में देखकर कहा, ‘‘फल खाइये, अभिनय मत कीजिए। मुझे सब पता चल चुका है। आपका घाव बहुत पहले ठीक हो चुका था फिर आपने ये बात मुझे बताई क्यों नहीं ?’’
राम को झटका लगा। सोचा आज सच उजागर हो गया। उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘तुम्हारे हाथों से फल खाने से मुझे विशेष सुख मिल रहा था और मैं उस सुख से वंचित होना नहीं चाहता था।’’
सीता बोली, ‘‘अच्छा तो ये बात थी। आपने हमें भुलावे में रखा इसका दंड आपको मिलना चाहिए। आपका दंड है कि जितने दिनों मैंने आपको अपने हाथों से खिलाया है उतने दिनों तक आपको भी मुझे अपने हाथों से खिलाना होगा।’’
राम ने कहा, ‘‘ये पुरस्कार है जो मुझे स्वीकार है।’’

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