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भरत जी जब भगवान राम से मिलने चित्रकूट आते हैं।
सेना से जंगल में कोलाहल मच जाता है।
लक्ष्मण जी जब यह सुनते है।
कितना भला बुरा बोलते है।
यहाँ तक कि भरत पर आक्रमण के लिये ब्रह्मास्त्र निकाल लेते है।
भगवान राम लक्ष्मण जी को बहुत तरह से समझाते है।
घायल मारीच जब राम राम कहता है।
सीता जी लक्ष्मण जी से कहती है कि
सहायता के लिये जाओ।
वह मना कर देते है।
सीता जी इतना लक्ष्मण को बोलती है,
कि कहा नहीं जा सकता।
उधर परसुराम जी,
पृथ्वी पलट देने पर उतारू थे।
पिता वचनबद्ध है,
माताओं में मतभेद है।
ऋषियों को सभ्यता चाहिये,
समाज को मर्यादा चाहिये।
इन सभी कथाओं को मिलाइए,
तब पता चलता है कि भगवान राम
कैसे सब में समन्वय स्थापित करते है।
कैसे सबको समझाते है,
कैसे सभी को कर्त्तव्य पालन के लिये प्रेरित करते है।
एक महाबलशाली राक्षस के विरुद्ध,
वनवासी लोगों की सेना बनाकर युद्ध करते है।
उसमें भी आधे आपसी प्रतिशोध में जल रहे है।
अंगद को सुग्रीव से जलन है,
सुग्रीव को बाली से है।
विभीषण को रावण से है।
सभी प्रताड़ित, शोषित
अप्रशिक्षित लोग उनकी सेना में है।
एक हनुमानजी के

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