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गर्भ से पहले और गर्भकाल में यदि माता-पिता ध्यान करते हैं तो बच्चे पर इसका क्या असर पड़ता है?
निश्चित ही, बच्चे का जीवन जन्म के बाद नहीं शुरू नहीं होता। वह तो गर्भ धारण के समय से ही शुरू हो जाता है। उसका शरीर ही नहीं, माँ के पेट में उसका मन भी बनता है। उसका ह्रदय भी बनता है। माँ अगर दुखी है, परेशान है, चिंतित है तो ये घाव बच्चे पर छूट जाएगा और ये घाव बहुत गहरे होगें, जिनको वह जीवनभर धो कर भी नहीं धो सकेगा, माँ अगर क्रोधित है, झगड़ालू है,हर छोटी-मोटी बात का बतंगड़ बना बैठती है तो इसके परिणाम बच्चे पर होने वाले हैं।इस दौरान पति का भी उतना ही दायित्व बनता है की वह अपनी पत्नी का पूरा ख्याल रखे,ऐसी अवस्था में ससुराल में प्रत्येक व्यक्ति को औरत की हर संभव देखभाल करनी चहिए, अगर माँ पूरे नौ महीने बच्चे को ध्यान में रखकर चले, ऐसा कुछ भी न करे जो ध्यान के विपरीत है और ऐसा कुछ करे जो ध्यान के लिए सहयोगी हो, तो निश्चित ही इन नौ महीनों में किसी बुद्ध, राम, या कृष्ण को जन्म दिया जा सकता है।

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