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जब महाराणा प्रताप युद्ध के बाद जंगल-जंगल भटक रह थे तब अकबर ने एक जासूस को महाराणा प्रताप की खोज खबर लेने को भजा. गुप्तचर ने आकर बताया कि महाराणा अपने परिवार और सेवकों के साथ बैठ कर जो खाना खा रहे थे उसमें जंगली फल, पत्तियाँ और जड़ें थीं. जासूस ने बताया न कोई दुखी था, न उदास. ये सुनकर अकबर का हृदय भी पसीज गया और महाराणा के लिए उसके हृदय में सम्मान पैदा हो गया.
अकबर के विश्वासपात्र सरदार अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना ने भी अकबर के मुख से प्रताप की प्रशंसा सुनी थी. उसने अपनी भाषा में लिखा, “इस संसार में सभी नाशवान हैं. महाराणा ने धन और भूमि को छोड़ दिया, पर उसने कभी अपना सिर नहीं झुकाया. हिंदुस्तान के राजाओं में वही एकमात्र ऐसा राजा है, जिसने अपनी जाति के गौरव को बनाए रखा है."
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