कैंसर को लताड़कर आँगन में ख़ुशी को आमंत्रण !
कांस्टेबल सुनीता चौधरी का ज़िंदगी को सलाम !
हमारी सुनीता को बधाई और माँ बेटे के साथ पूरे परिवार को शुभकामनाएँ । सुनीता जैसलमेर पुलिस में कांस्टेबल है और कुछ साल पहले कैंसर को मात देकर ज़िंदगी की पटरी पर दौड़ने लगी है । अब माँ बनी है । इस खबर से हमारा अभिनव परिवार बहुत खुश है ।
सुनीता की ज़िंदगी मेरी तरह खुली किताब है । कैंसर को उसने छुपाया नहीं और उससे डरी भी नहीं । कीमो के दौरान घोट मोट माथे की उसकी फ़ोटू ! (अब तो बाल भी वापिस लंबे हो गए हैं !)
सुनीता ने संगीत को अपनाकर अपने आपको अंदर से बहुत मजबूत कर लिया था । और कैंसर हार लिया । वास्तव में कैंसर की कहानी इतनी सी है । ध्यान न दो तो वह हार जाता है । शायद आने वाले समय में डर कम हो तो कैंसर का हौवा ख़त्म हो जाएगा ।
मुझे तो एक डॉक्टर के रूप में और जुगाड़ू मनोवैज्ञानिक के रूप में कैंसर कोरोना का दादा लगता है ! इसको नकारने में ही इंसानियत का भला है । जितना व्यक्ति उससे डरता है, उतना ही हावी होता है क्योंकि इससे लड़ने की क्षमता (immunity) चिंता और डर से बहुत कम हो जाती है । कोरोना से भी अधिकतर लोग डर के कारण ही हार गए थे ।
सुनीता ! तुमको, हमारे ज़मींदार देव जी और नन्हे भुवन को और पीहर- ससुराल के परिवारों को खूब शुभकामनाएं