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हमारे जीवन में अक्सर कुछ चीज़ों या बातों का बहुत प्रभाव होता है! और यह प्रभाव यूँहीं अचानक नहीं होता, वो आपकी परवरिश और वातावरण से आता है।
मैंने कई बार जिक्र किया है कि मैं एक छोटे शहर के संयुक्त परिवार में पली बढ़ी हूँ। मेरे घर मे धार्मिक माहौल बचपन से ही था। हर मंगलवार बालाजी के पाठ करना अनिवार्य शर्त होती थी, मावे की मिठाई रूपी प्रसाद के लिये। तो मक्का के दानों से राम कौन कितना बड़ा लिखता है....इसकी प्रतिस्पर्धा हम 12 बच्चों के बीच होती थी। तो कभी बिजली जाने पर माँ पिताजी ( दादा दादी) से धार्मिक कहानियां और ग्रन्थों के किस्से सुनते थे।
इसी तरह हँसते खेलते हमारे बड़ो ने कब हमे यह सब संस्कार सीखा दिए, पता ही नहीं चला।
आज यूँहीं सर्च करते समय गीता सार का यह चित्र दिख गया। आज भी याद है यह चित्र वाला कैलेंडर हमारे कमरे में लगा होता था। जिसे पापा अक्सर शेव करते समय या तैयार होते समय हमें सुनाते थे। जब पढ़ना नहीं आता था, तो पापा से सुनते थे। और जब पढ़ना सीखने लगे तो अटक अटक कर तुतला तुतला कर गीता सार बोलते थे।
पर यह आज भी जबानी याद है। पहले खेल खेल में और फिर बड़े होते होते यह संशय या कन्फ्यूजन की स्थिति में याद आने लगता।
अब वक्त के साथ घर बदला, माहौल बदला और कुछ सोच में भी परिवर्तन आया। पर नहीं बदला तो यह गीता सार को याद करने का तरीका।
जीवन में एक बार जब बहुत ही कठिन समय से गुज़र रही थी। और आगे कुछ दिखाई नहीं देता था...दिमाग शून्य हो गया था। उस समय मे, मैं रोज पापा के ऑफिस में लगातार गीता सार लिखा करती थी।
मुझे यह बात याद भी नहीं थी कि, अवसाद के उन क्षणों में मैंने कब और कितनी बार गीता सार लिखा है। पर एक दिन जब अपने घर गई हुई थी। और अपनी आदत के अनुसार पापा के ऑफिस में बैठकर उनके बहीखाते देखने लगी, तब पापा ने मुझे वो बहीखाता बताया, जो सालों से उन्होंने सम्भाल रखा था....तब खुद आश्चर्य हुआ।
यह तो तय है कि मुश्किल वक्त अपने समय और अपनी तासीर से ही गुजरता है। पर उन क्षणों में गीता सार आपके लिये हिम्मत बन कर खड़ा रहता है। वो बारिश होने से रोक नहीं सकता, पर एक छाते का अहसास आपके सिर पर हमेशा के लिये बनाए रखता है।
आज एक तस्वीर से बहुत सी यादें याद आ गई।
गीता सार कुछ पंक्तियाँ नहीं हैं, जीवन का सार है।

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