2 ans

दार्शनिक, चिंतक के शब्द का महत्व है। लेकिन जब ईश्वर के शब्द हो तो उसका महत्व बहुत समग्रता में होता है।
गीता में एक शब्द है,
समत्व।
सुखेदुःखे समेकृत्वा,
लाभालाभौ जया जैयो।
इसका अर्थ आध्यात्मिक, मनोवैज्ञानिक और वैज्ञानिक कई अर्थों है।
आध्यात्मिक इतना ही पर्याप्त है कि यह ईश्वर कि वाणी है, और किसी व्याख्या कि आवश्यकता नहीं है।
विज्ञान कि दृष्टि से देखें तो सारा चिकित्सा विज्ञान इस पर चलता है कि शरीर में सब कुछ एक औसत मात्रा में है। यदि वह संतुलित मात्रा से बढ़ जाय या कम हो जाय तो शरीर बीमार है। फिर हम कारणों पर विचार करके, उपचार करते है।
लेकिन मेरी दृष्टि मनोविज्ञान पर अधिक है। जिससे अधिकतर लोग पीड़ित है।
सवेंदना , भावना और स्पंदन ( emotion, feeling) से चलती है। इसी से दुख , सुख, पीड़ा , कष्ट, प्रेम , वियोग सभी कुछ है।
बहुत सारे विद्वान , दार्शनिक, बुद्ध पुरूष इसके निषेध कि बात करते है।
जिससे अब हम गलत कह सकते है। एक चिंतक ने कहा था, जब विज्ञान पूर्णता के साथ प्रकट हो जायेगा तो इस संसार में एक ही धर्म रहेगा। वह है, कृष्ण।
यदि हमारे शरीर में सब कुछ संतुलित मात्रा में है। फिर सवेंदना भी में होगी।
यह सवेंदना स्थिर और अपने संतुलित मात्रा में रहे इसके लिये ईश्वर कहते है।
समत्व भाव में रहो।
इसको सरलता से समझने के लिये, एक हॉलीवुड कि फ़िल्म है, 'equilibrium ' देखनी चाहिये। अधिकतर लोग इसे ऐक्शन फ़िल्म के रूप में देखते है। लेकिन इसका संदेश बिल्कुल अलग है।
फ़िल्म यह दिखाती है कि world war3 हो गया। परमाणु अस्त्रों का प्रयोग हुआ। संसार में कुछ लाख लोग ही बचते है। वह तकनीकी रूप से बहुत योग्य हो गये। उन्होंने एक फ़ादर को चुना।
फ़ादर के पास एक काउंसिल है। काउंसिल और फादर यह निर्णय लेते है कि युद्ध का कारण मनुष्य का emotion, feeling है।
उनका निष्कर्ष तार्किक लगता है। क्रोध, ईष्र्या, लालच, महत्वाकांक्षा सभी कुछ भावना से ही पैदा हो रहे है।
उन्होंने एक दवा विकसित किया, जो भावना को नष्ट कर दे, उसके लिये एक खतरनाक सेना बनाते है। जो हर 24 घँटे पर लोगों को यह दवा दे जिससे लोग भावना को महसूस न कर सके।
लेकिन यही भावना तो प्रेम , सौंदर्य, कला, साहित्य, दया, करुणा भी पैदा करती है। इसके बिना जीवन मरुस्थल है।
क्या तुम समझते हो कि मित्रता क्या होती है ?
प्रेम में स्वप्न, दूसरों के कदमों पर चलता है। क्या तुम इसको समझ सकते हो।
ऐसे प्रश्न फ़िल्म के नायक को झकझोर दिया। उसने विद्रोह किया तो पता चलता है कि फादर और काउंसिल वह दवा नहीं लेते है जो भावना को नष्ट करती है। इस तरह फिर से भावना ही विजित होती है।
अति और न्यून के बीच एक और भाव है। जिससे समत्व कहते है। हमारी पीड़ा यह है कि हम अति पर है या न्यून पर है। हम बीमार है। इसका उपचार एक ही है कि इसे संतुलन में लाइये योग से , ध्यान से, चिंतन से यही समत्व है।

image