यह तस्वीर मन मे बसी है। राम-सीता की। तब से जब श्री रामायण के नाम पर रामानंद सागर जी की रामायण को देखा था।
प्रभु राम के बारे में सोचकर जब आँखे बंद करती थी, तो मन मे यही मुस्कराता हुआ चेहरा दिखता था। हम सभी का बचपन और बचपन की रामायण इन चेहरों के बिना अधूरी है।
अपने भाई के साथ स्कूल जाते समय उनका पोस्टर भी दिख जाता...तो हम दोनों चिल्लाते; हमने राम सीता देखे....हमने राम सीता देखे। वहीं सड़क पर दण्डवत प्रणाम करने लगते। पर कभी किसी ने हमे टोका नहीं। उस समय के 'नासमझ' लोग भी हमारे भाव समझते थे। और मुस्कराकर देखने लगते थे।
यह श्री रामायण की ही महिमा थी, कि उसमें अभिनय निभाने वाले किरदार भी आजीवन राम नाम की महिमा में बंधे रहे। अरुण गोविल ने कभी शराब को हाथ न लगाया तो रावण का अभिनय करने वाले अरविंद त्रिवेदी आजीवन शाकाहारी रहे।
यह है प्रभाव! क्योंकि यह आस्था और भाव की बात है। कुतर्की कभी समझ नहीं सकते इसे।
राजी तेरी रजा में🙏
जय श्रीराम