यह एक वाक्य है कि...
मानव सभ्यता का निर्माण युद्घ से हुआ है।
जैसे ज्वालामुखी की राख से धरती उपजाऊ बनी थी।
जहां युद्ध होता है, वहाँ ज्ञान भी होता है।
ज्ञान और युद्ध का सम्बंध प्राचीनकाल से है।
रोमन युद्धकला प्रेमी थे। उन्होंने उतने ही दार्शनिक भी पैदा किये।
भारत युद्धभूमि रहा है। यह एक मात्र सभ्यता है जिसने युद्ध के लिये एक क्षत्रिय वर्ण ही निर्मित कर दिया। लेकिन भारत उतना ही ज्ञान के लिये भी जाना जाता रहा है। धर्म और जीवन रहस्यों को समझने के लिये शोधरत रहा।
ज्ञान और युद्ध अनिवार्यता दिखती है।
इस पर प्रश्न हो तो स्प्ष्ट कर दूं कि मैं सभ्यता कि बात कर रहा हूँ, खानाबदोश लुटेरों कि नहीं।
आज वर्तमान में देखिये.. जो राष्ट्र युद्ध के लिये आत्मनिर्भर हैं, वह ज्ञान में भी विकसित हैं।
इसका एक बेहतरीन उदाहरण है...
अरब और इजरायल!
अरबों के पास पैसा है लेकिन वह रक्षा में विकसित नहीं हैं।
उनके पास प्रशिक्षित पायलट तक नहीं हैं। तो उनके पास ज्ञान भी नहीं है।
इजरायल जो अकेले पूरे अरब को हरा दिया था, उसके पास ज्ञान है।
युद्ध का साहस और जीवन का ज्ञान साथ साथ चलते हैं।
जो साहसी नहीं है, वह तपस्वी नहीं बन सकते।
कायरों का ज्ञान भी कोरी कल्पना और सन्तुलनवाद होता है।
जो लक्ष्य साध सकता है, वही स्प्ष्ट विचार भी दे सकता है।
इस जगत का सबसे गहरा ज्ञान, युद्धभूमि से दिया गया था।
प्रथम योद्धा के संदेह को प्रायः ईश्वर ही दूर करते हैं।।