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विश्व के सबसे शक्तिशाली राष्ट्र का सविंधान अलिखित है।
सबसे भ्र्ष्ट देश नाइजीरिया का सविंधान सबसे संतुलित माना जाता है।
सबसे बड़े भारत के सविंधान अब तक सबसे अधिक संशोधन हुये है। सविंधान पूजको के देख रेख में पूरा सविंधान 42 वे संसोधन में बदल दिया गया था।
इसी सविंधान कि आड़ में कैसे निरकुंश सत्ता चलती थी, यह देखा गया है। धारा 356 लगाकर राज्यों की सरकार बर्खास्त की जाती थी।
कांग्रेस ने 91 बार गैरकांग्रेसी सरकारों को अपदस्थ कर दिया गया।
सविंधान कोई ऐसी विचित्र रचना नहीं है जिसका गुणगान किया जाय।
आज 10 बौद्धिक लोंगो को बैठा दीजिये। इससे अच्छा सविंधान बनाकर दे देंगें। ऐसे ही समूह ने उस समय भी बनाया था।
अमेरिकी कांग्रेस आवश्यकता के आधार पर कानून बनाती है।
सभी देश व्यवस्था के लिये सविंधान कानुन बनाये है।
लेकिन कानून या सविंधान जीवन मूल्य पैदा नहीं कर सकते है।
समाज का निर्माण जीवन मूल्यों के आधार पर चलता है।
व्यक्ति कि वर्जना से समुदाय नहीं बनता। समुदाय से ही समाज राष्ट्र का निर्माण होता है।
प्रतिदिन, प्रतिपल कोई सविंधान हमें यह नहीं बता सकता कि परिवार, मित्र , समाज आदि से हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिये।
यह मूर्खतापूर्ण तुलना है कि शास्त्रों के सामने सविंधान लाया जाता है।
जिन राष्ट्रों कि अपनी प्राचीन संस्कृति है। वहाँ तो सविंधान और भी महत्वहीन है।
इतने लंबे संघर्ष तुर्क, मुगल , अंग्रेजों के शासन में हम जीवित थे तो अपनी इसी संस्कृति के मूल्यों के आधार ही थे।
रामायण, महाभारत भारतीय समाज के लिये जीवन मूल्यों का निर्धारण, सिद्धांतों का निर्माण, अटूट धार्मिकता, व्यवहारिक जीवन को बनाने में शताब्दियों से एक महान भूमिका निभा रहे है।
हमारे ऋषियों ,कवियों , लेखकों , संगीतकारो, कलाकारों ने रामायण और महाभारत के आधार पर ऐसी रचना कि इस संस्कृति का धारा निरंतर प्रवाहित है।
हमें यह समझना होगा कि ड्राइविंग लाइसेंस लेकर चलने और सड़क पर पड़े किसी घायल को उठाकर अस्पताल में पहुँचाने में क्या अंतर है।
गोस्वामी तुलसीदास जी जो रचना किये है। वह ड्राविंग लाइसेंस नहीं है। जिसके न रखने से सजा हो जायेगी।
भक्तशिरोमणि जो लिखें है वह हृदय का स्पंदन और आत्मा का उद्धार है। वह वही है जो किसी सड़क पर घिरे रक्त से लथपथ व्यक्ति को हम अस्पताल पहुँचा देते है। यदि न भी पहुँचाये तो कोई सजा नहीं है।
रामचरित मानस कोई सामान्य रचना नहीं है। हिंदी बोलने वाले हर व्यक्ति को कम से कम एक चौपाई तो अवश्य कंठस्थ रहती है।
बहुत दरिद्रता, पीड़ाओं के साथ गंगा किनारे झोपड़ी में एक कवि ने यह रचना कि है।
यह कहते हुये किये -
स्वांतः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा।

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