हस्तिनापुर कि सभा में भरत की वंश बहू और
द्रुपद की पुत्री को कर्ण ने बोला.... यह वेश---- है।
एक 16 वर्ष के बालक ने युद्धकला की सबसे कठिन ब्यूह रचना को तोड़ दिया। उस परम् वीर बालक का उद्देश्य बस इतना था कि द्रोण, युधिष्ठिर को बंदी न बना पाये।
उस बालक को कुरुक्षेत्र के सात महारथियों ने मिलकर मारा।
उसके ऊपर पहली तलवार कर्ण ने चलाई थी।
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महाभारत युद्ध में आज अर्जुन कर्ण आमने सामने हैं।
यह युद्ध बहुत उच्चकोटि का है।
यह युद्ध योद्धाओं से ही नहीं, सारथियों के लिये प्रसिद्ध है। उस समय के सबसे निपुण सारथी भगवान कृष्ण और राजा श्लैय हैं।
अर्जुन दिव्यास्त्र निकालते हैं।
तभी अचानक से कर्ण के रथ का पहिया भूमि में धँस जाता है।
वह अर्जुन से कहता है....
हे श्रेष्ठ धनुर्धर, तुम क्षत्रिय हो, युद्ध के सभी नियमों में निष्ठा है। मैं पहिया जब तक नहीं निकाल लेता, बाण मत चलाना।
अर्जुन बाण नीचे कर लिये।
कर्ण पहिया निकाल रहा है।
विदेशमंत्री जयशंकर अपनी पुस्तक में उनको ईश्वर ही नहीं सबसे महान डिप्लोमैट कहते हैं। अपनी अपनी श्रद्धा है।
तो वह परमेश्वर, वह महान डिप्लोमैट कहते हैं...
क्या देख रहे हो पार्थ ?
अर्जुन कहता है, यह युद्ध के नियमों, धर्म के विरुद्ध है भगवन।
भगवान कहते हैं -
वह कर्ण किस नियम का पालन किया है ?
धर्म के किन मूल्यों पर यह कर्ण चला है। वह दुर्योधन के हर पाप का भागीदार है।
बाण चलाओ, मारो इसे।
दिव्यास्त्र ने कर्ण का धड़ अलग कर दिया।
यह ज्ञान, यह डिप्लोमेसी भारत ने अपने इतिहास में बहुत बार भुला दिया।
धर्ममात्मा से धर्मयुक्त व्यवहार होता है... अधर्मियों से नहीं।।