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मैं नहीं जानती प्रेम क्या है? बस चाहती हूँ, भीड़ भरी जगहों पर तुम कस कर पकड़ लो मेरी कलाई, और मैं नज़रें झुका कर तुम्हारे पीछे चलती रहूँ। तुम भीड़ से बाहर निकलकर मेरी पीठ पर थोड़े गुस्से के साथ एक धौल जमा कर कहो;
'किसने कहा था ऐसी जगहों पर कूदते फांदते और रुकते हुए चलने को?'
जवाब में, मैं मुस्कराऊं और अपने दोनों हाथ से कानों को पकड़ लूँ और तुम खिलखिला कर हँस दो।
मैं नहीं चाहती ढेर सारे उपहार और न ही कोई कीमती गहना! मैं चाहती हूँ तुम हर बार मेरी गलतियों पर 'कोई नहीं होता है' कहकर अपने काम मे लग जाओ। और मैं खड़ी देखती रहूँ तुम्हे दरवाजे की ओट से।
मुझे नहीं पता बिगड़ी बातों को कैसे सँवारा जाता है? मुझे रूठो को मनाना भी नहीं आता! पर जब मैं रुठ जाऊँ तो तुम मुझे हर बार मनाओ...और जब मैं मुस्कराऊं तो तुम्हारी आँखे चमक जाएं।
मुझे निडर होना अब तक नहीं आया। मेरी इस कमजोरी पर तुम शांत होकर मुस्कराओ, और जब बादलों की तेज गड़गड़ाहट हो या चमके जोरो से बिजली...तुम मेरा हाथ पकड़ लो, और मैं तुम्हारी पीठ से सटकर आँखे बंद कर लूँ।
मैं नहीं चाहती हर समय बस तुम मुझसे ही बातें करो। मुझे ही समय दो। मैं चाहती हूँ जब सर में दर्द हो....तुम चुपके से मेरे लिये चाय बना कर ले आओ। मैं अवाक होकर देखती रहूँ...और तुम प्यारी सी स्माइल के साथ मेरे माथे को चूम लो।
जब सारी दुनिया मेरे खिलाफ हो तब तुम दृढ़ होकर मेरे साथ खड़े रहो। और कहो;
'मैं जानता हूँ यह सही है'!
जब कोई मुझ पर विश्वास न करे तब भी तुम हो जो मुझ पर और मेरी सच्चाई पर भरोसा रखों।
सारी दुनिया की बनावटी रुमानियत से परे...तुम बस हर मुश्किल में, हर परेशानी में...मेरी आँखों मे आँखे डालकर कहो;
मैं हूँ न! सब ठीक हो जाएगा। ❤️
मेरे लिये इस दुनिया मे इससे ज्यादा रूमानी कुछ नहीं। क्योंकि देखो न...मैं नहीं जानती...प्रेम क्या है?
बाकी तो...