2 yıl - çevirmek

रोती बेटी को घूँघट में रोकर नकारते देखा है।
एक माँ को जमीं पर आसमां उतारते देखा है।।
मजबूरियों की बेड़ियाँ ऐसी ही होती हैं साहिब-
इन बेड़ियों में भी ज़िन्दगी को गुज़ारते देखा है।
चढ़े थे जो अपनो के कंधों का सहारा ले ऊपर-
उसी ऊँचाई से उन्हें अपनो को दुत्कारते देखा है।
देकर के जिसने धक्का लहुलुहान कर दिया-
उसी को फ़िर ज़ख्मों पर फूंक मारते देखा है।
कहते थे वो पत्थर हो गई बेटे को खो कर के-
उसे अकेले,चुपके से चाँद को दुलारते देखा है।
वो पिता एक ग़ज़ब का कलाकार भी निकला-
उसे बच्चों के वास्ते भूखे पेट भी डकारते देखा है।
माफ़ कर के तमाम ग़लतियाँ अब तक जो हुई-
झुर्रियों वाले हाथों को औलादें पुचकारते देखा है।

image