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पिछली पोस्ट पर आये कमेंट से यह विचार आया है।
मैं यह कह रहा था।
सारे नीलगाय, साँढ़, भैंसा सब शहर में लाकर छोड़ दिया जाय।
जो गमले में बरगद, पीपल, ताड़, चमेली, अशोक लगाकर सब बैठें है। तब पता चले कि छुट्टा जानवर क्या होंते हैं।
शहर का पाप गाँव क्यों भुगते।
जब ढाई किलो का तोंद लेकर प्रोफेसर साहब लोग साँढ़, नीलगाय दौड़ायेंगे तो उसका आनंद अलग ही होगा।