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इतिहास को पढ़ते समय कालक्रम और उसका विकास अवश्य पढ़ना चाहिये। तभी हम कुछ निष्कर्ष तक पहुँचने का अधिकतम प्रयास कर सकते हैं।
अपने व्यक्तिगत, सामुदायिक स्वार्थ या दूसरों को नीचा दिखाने के लिये हम तथ्यों का एक पक्ष रख देते हैं। यह पूर्वाग्रह ही है।
कोई 1500 वर्ष तक निरंतर युद्ध करते हुये भारत के योद्धा अंतिम 500 वर्षों में क्यों जीतते हुये निर्णायक युद्ध को हार जाते थे। यह उनकी वीरता पर प्रश्न नहीं है, न ही कोई इतिहासकार ऐसा दुःसाहस कर सकता है। यह वही भारतीय योद्धा हैं जिन्होंने हूण, शक, यवनों को बार बार परास्त किया था।
यूरेशिया के खाली मैदान जो चीन से लेकर मंगोलिया, मध्य एशिया तक फैले थे, उनमें रहने वाली खानाबदोश, घुमंतू जातियां अपनी उत्तरजीविता की प्रवृत्ति में बर्बरता को अपना लिया था। उन्होंने रोम, रूस, चीन, पारस, मिस्र जैसी सभ्यताओं को नष्ट कर दिया।
इन घूमंतू जातियों में सबसे पहले हूण थे, जिनकों यशोवर्मन, समुद्रगुप्त, विक्रमादित्य आदि महान राजाओं ने परास्त किया था।
मध्य युगीन यह खानाबदोश जातियां घोड़ों से लाखों की संख्या में चलती थीं। जिन सभ्यताओं को इन्होंने नष्ट किया, वह भी अश्वों का ही प्रयोग करते थे। अपनी बर्बरता से दहशत पैदा करके रक्त की नदी बहा देते थे।
इधर, प्राचीन भारतीय योद्धा युद्ध में हाथियों का प्रमुख उपयोग करते थे। यह प्रशिक्षित हाथी अग्रिम पंक्ति में आगे चलते थे। इन्होंने हूणों, शकों को मसल दिया। उनके ऊपर बैठे योद्धा अपने अचूक अस्त्रों से युद्ध का निर्णय कर देते थे। सिकंदर को लगभग पराजित करने में इन हाथियों की बड़ी भूमिका थी।
इस्लाम के आगमन के बाद इन घूमंतू, खानाबदोश जातियों ने उसे स्वीकार कर लिया। इससे उनकी बर्बर परंपरा को नैतिक बल मिल गया। तुर्क, कुर्द, मुगल उन्हीं खानाबदोश जातियों की वंशावली हैं। लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण एक घटना चीन में हुई। जहां बारूद का आविष्कार और विकास हुआ। इसका प्रयोग अब युद्ध में हथियार के रूप में होने लगा। इन खानाबदोश जातियों ने युद्ध में बारूद का बखूबी इस्तेमाल किया।
लेकिन भारत के लोग अपनी भौगोलिक बाध्यता से सदैव चीन से दूर रहे। यहां भारतीय योद्धा बारूद का उपयोग नाममात्र के लिये ही कर पाये या नहीं किये।
यह बारूद, हमारी वीरता से अधिक उस युद्ध रणनीति को विफल किया जिसमें हाथियों का प्रयोग होता था। कई निर्णायक युद्ध में यह हाथी तोपों के सामने आत्मघाती सिद्ध हुये। इन सब के साथ वह बर्बरता भी थी जिसकी कल्पना भारतीय योद्धा नहीं किये थे।
अपनी वीरता और हाथियों के बल पर महान योद्धाओं ने हजारों वर्ष तक अपनी सभ्यता की रक्षा की थी। वह समय के साथ उसकी उपयोगिता पर विचार नहीं किये। इन सब के बाद भी वह निरंतर आक्रमणकारियों और उनके उत्तराधिकारियों के लिये चुनौती बने रहे। केवल मुगलों से तीन हजार बड़े युद्धों का संकलन है। फिर भी हम यह सीख सकतें हैं। जो विरुद्ध है उसकी नैतिक मान्यतायें क्या हैं। विकासक्रम में आवश्यकताओं की निर्थकता- सार्थकता क्या है।।
Ravishankar Singh

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