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संत या ज्ञानी लोक कल्याण के हित के लिए ज्ञान की तलाश में रहते हैं और हमेशा अपनी कथानी भी रखते हैं ठीक उसी तरह संत बुद्ध जी अपनी तथा ब्राह्मणों के प्रति राखा पर वे जिस ज्ञान प्राप्ति के लिए गृहस्थ आश्रम का त्याग किया या जितना ज्ञान प्राप्त किया उतना एक सुध ब्राह्मण गृहस्थ आश्रम में रहते हुए रखते थे और हैं| जितना ज्ञान उन्होंने दर्शन दिलाया एक शीर्षक के उतना ही कार्य किया है, हर कथा में यही बताया गया है कि बुध जी ने एक ब्राह्मण को ज्ञान दिया,,, पर उन्होंने किसी ब्रह्मण या कोई सच्चा गुरु से ज्ञान प्राप्ति नहीं किया... बड़ी बात ये आती है उनके कुलगुरु एक ब्राह्मण ही थे जो सबसे पहले जाहिर कर दिए थे कि सिद्धार्थ गृहस्थ त्याग बुद्ध बन जाएंगे|
वही स्वयं परमेश्वर श्री कृष्ण जी की जो शखा के साथ-साथ एक दरिद्र थे पर उन्हें सदा प्रथम आदर एक ब्राह्मण को देने के बाद ही सखा को दिया, श्री कृष्ण परमेश्वर हैं इश्क सबूत आज भी धरती पर आम इंसानों के बीच ही रहते हैं जो एक ब्राह्मण के कारण ही जीवित बचे हैं पर अपने कृत के कारण श्रापित भी हैं अश्वत्थधामा जी |
हर संत ब्राह्मण से जलन भी करता है या दिखावटी प्रेम क्यूकी ज्ञान प्राप्ति के बाद ज्ञान को निरंतर कर रखने के लिए शास्त्र की ज्ञानी यानी ब्राह्मण की मदत लगती रहती है संतो को वर्नो से ऊपर बताया गया है पर ये संत प्रकुति की ज्ञान में लगे रहते हैं नकी परम ज्ञान। जो परम ज्ञानी हो वही ईश्वर है |
संपूर्ण महाभारत में महाकाले रूपी श्री कृष्ण से एक ही इंसान बच पाया था वाह है एक ब्राह्मण|
जयपरशुराम जी
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