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सूर्य ग्रहण के दिन पैदा, दुनिया को रोशनी दिखा रहीं...!
डुबो देता है कोई नाम तक खानदान के, किसी के नाम से मशहूर होकर गांव चलता है... दीप्ति जीवानजी को गांव वालों ने पागल, बंदर, बदसूरत... ना जाने क्या-क्या कहा और अब यही गांव दीप्ति के नाम पर सीना ताने घूमता है। दीप्ति जब पैदा हुई तो रिश्तेदार बोलने लगे कि ऐसी लडक़ी पालने से अच्छा है कि इसे कहीं दे आओ। गांव वाले भी कह रहे थे कि अनाथालय में छोड़ आओ, लेकिन सूर्य ग्रहण के दिन पैदा हुई, दिमाग से कमजोर लडक़ी को उसके मां-बाप ने सीने से लगा लिया और आज यही लडक़ी दुनिया भर में भारत का नाम रोशन कर रही है।
चार बच्चों का परिवार पालना जीवानजी यादगिरी और जीवानजी धनलक्ष्मी के लिए तब मुश्किल हो गया, जब दीप्ति के दादाजी गुजर गए और आधा एकड़ की बची-कुची जमीन बेचना पड़ी। मां को भी मजदूरी पर जाना पड़ा। दूसरी तरफ दीप्ति का गांव वालों ने जीन मुहाल कर दिया था। स्कूल से लौटकर आती तो मां के सामने दिनभर रोती। तब मां उसे मीठे चावल खिलाकर चुप कराती। दीप्ति की प्रतिभा सबसे पहले सरकारी स्कूल के पीटी कोच बियानी वेंकटेश्वरलु ने पहचानी। दिमागी मजबूतों को भी दीप्ति दौड़ में हरा देती। बियानी बताते हैं कि जब उसका दमखम देखा तो हैरान रह गया। वो बाकी बच्चों को बहुत पीछे छोड़ रही थी। इसलिए उसे सौ और दो सौ मीटर रेस में दौड़ाना शुरू कर दिया। दीप्ति के साथ दिक्कत यह थी कि वो दौड़ते-दौड़ते भूल जाती थी कि उसे किस लेन में दौडऩा। इसलिए उसके साथ दौडऩा पड़ता था।
दीप्ति की किस्मत चमकी जब साई कोच रमेश बाबू ने उन्हें खम्मम में हुई प्रतियोगिता में देखा। रमेश बाबू दीप्ति को साई ले जाने के लिए घरवालों को मनाने गए। बताते हैं कि उसके परिवार के पास दीप्ति को हैदराबद भेजने के लिए बस किराए के भी पैसे नहीं थे। जब दीप्ति को साई सेंटर ले आए तो प्रैक्टिस के लिए तैयार करना टेढ़ी खीर था कि हर वक्त किसी एक को उसके साथ रखना पड़ता था। यहीं दीप्ति पर पुलेला गोपीचंद की नजर पड़ी और जौहरी की आंख हीरे को पहचान गई। उन्होंने दीप्ति की मदद के लिए रमेश बाबू को सिंकदाबाद में विकलांगो की संस्था भेजने को कहा। इसके बाद दीप्ति भुवनेश्वर में पैरा नेशनल खेल गई और फिर गोपीचंद माइत्रा फाउंडेशन की मदद से पैरालिंपिक की खातिर ऑस्टे्रलिया और मोरक्को का सफर तय किया।
गोपीचंद बोले कि दीप्ति जैसी खिलाड़ी को तैयार करने के लिए मानसिक ही नहीं भावनात्मक और आर्थिक रूप से मदद की जरूरत होती है। सबसे पहले तो यह तय किया गया कि वो किस वर्ग में खेलेगी। उसके बाद इंटरनेशनल टूर्नामेंट के लिए तैयार किया गया। दीप्ति ने मोरक्को में सोना तो ऑस्टे्रलिया में भी खिताब जीता, लेकिन जैसे ही दीप्ति ने विश्व पैरा एथलेटिक्स चैंपियनशिप में विश्व रिकॉर्ड के साथ सोना जीता तो दिहाड़ी मजदूरी करने वाले परिवार के घर तेलंगाना के कलेडा गांव में लोगों का तांता लग गया और वो सब लोग जो दीप्ति को कहीं फैंक आने और अनाथालय भेजने की बात कह रहे थे... आज अपनी बेटी बता रहे हैं।
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