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शांत ब्राह्मण बालक राम के परशुराम बनने के पीछे मूल कारण गोवंश था!!

चित्र को देखो क्या दृश्य रहा होगा अगर वास्तव में तत्कालीन सम्राट अर्जुन के हजार भुजाओं को काट कर एक ब्राह्मण नवयुवा इस तरह बछड़े को कंधे पे टांगे नगर के राजमार्ग, गांवों की पगडंडियों , जंगल के राहों से गुजर कर आश्रम तक पहुंचा होगा और पीछे पीछे गोमाता हुलस्ती हुई कभी उसके आगे दौड़ते हुए एक जगह ठिठक कर खड़ी हो जाती होगी फिर वापस दौड़कर कभी उसके दाएं कभी बाएं रहकर उसे चाटती होगी तो कभी पीछे पीछे शांति से चलती होगी।

ये उस समय का कालखंड था जब भारत वास्तव में विश्वगुरु होता था। प्रबल राजतंत्र होता था!!

फिर भी गोमाता के अपमान पे बड़े से बड़े ताकतवर सम्राट तक यूँ ही पेल दिए जाते थे !!

जिस ब्राह्मण के ऊपर जिम्मेदारी थी समाज को नियंत्रित रखने की वही समाज से विद्रोही हो गया था। समाज के अगुआ के रक्त से गोमाता का अपमान , अपने जनक के अपमान का कीमत वसूला था।

जननी ने 21 बार छाती पिटी 21 बार रक्तपात कर दिया पुत्र ने।

समाज एवं धर्म के ठेकेदारों को आइना दिखा दिया कि ब्राह्मण का काम शंख और गंगाजल तक ही सीमित नही है।

वह नन्दीश्राद्ध के साथ अंत्येषित भी करा सकता है

जय श्री परशुराम 🙏🏿

सवर्ण आर्मी प्रदेश अध्यक्ष प्रवीण त्रिपाठी {झारखंड}

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