गुप्त वंश से राजा चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वितीय द्वारा बनवाया गया यह लौह स्तम्भ 1600 वर्ष से अधिक पुराना है। लोहे का बना हुआ यह स्तम्भ 7 मीटर ऊँचा है और इसका वजन 6 हज़ार किला से अधिक है। इस खम्बे का 1 मीटर हिस्सा ज़मीन में अंदर है। खम्बे के मूल के पास इसका व्यास 17 इंच और शीर्ष पर 12 इंच व्यास है।
इस लौह स्तम्भ पर जंग नहीं लगने की वजह जानने के लिए आईआईटी कानपुर के प्रोफेसर ने वर्ष 1998 में स्तम्भ के लोहे के मटेरियल पर प्रयोग किया था। इस प्रयोग से पता चला की स्तम्भ के लोहे को बनाते समय पिघले हुए कच्चे लोहे में फास्फोरस तत्व को मिलाया गया था। इससे आयरन में अणु बांड नहीं बन पाए। इस वजह से जंग लगने की गति हज़ारों गुना धीमी हो गई।
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