वायनाड की वो सुबह बादलों की वज़ह से निस्तेज सी थी। खिड़की से बाहर का नज़ारा देख के बुझे मन से में अपना कैमरा लेकर बाहर निकल पड़ा था।

पक्षी निहारने व उनकी तस्वीर लेने वाले हमेशा खुले आसमान और सुनहरी धूप का सपना देखकर ही सुबह सुबह अपनी पलकें खोलते हैं। पर भगवन इतने दयालु भी नहीं कि हर बार उनके स्वप्न को साकार ही कर दें।

मुझे भृंगराज (Greater Racket Tailed Drongo) की तलाश थी। पिछली शाम को ही मैंने उसे सुपारी के जंगलों से पास की एक झील की ओर जाते देखा था। भृंगराज से अगर आपकी मुलाकात अब तक न हुई हो तो इतना समझ लें कि ये हमारे घर के आस पास रहने वाले काले कोतवाल या भुजंगा (Black Drongo) का ही सहोदर है।

सुपारी वन के बीच अभी भी अंधेरा पसरा हुआ था पर उनसे भांति भांति की आवाज़ें आ रही थीं। उनमें से एक आवाज़ भृंगराज की भी थी। पर आप इसे आवाज़ से इतनी आसानी से नहीं पहचान सकते क्योंकि ये पक्षी अपने आस पास के पक्षियों की नकल उतारने में माहिर है। समझ लीजिए कि ये पक्षियों का सोनू निगम है😁।

इसके एक बार उड़ने की देर थी कि ये पहचान में आ गया। कम रोशनी में इसके काले नीले शरीर की छाया आकृति (silhouette) ही आ सकी पर वो silhouette इसकी पहचान के लिए काफी था।

इसके रूप की दो विशेषताएं इसे अपनी प्रजाति के बाकी पक्षियों से अलग करती हैं। एक तो इसकी लटकती हुई लंबी पूंछ जिसके दोनों ओर लहराते सिरे इसकी उड़ान को अनूठा बनाते हैं तो दूसरी ओर इसके सिर से निकलते घुमावदार बालों का गुच्छा जो एक कलगी की तरह दिखाई देता है।

बालों के इसी गुच्छे की वज़ह से इसका नाम भृंगराज पड़ा है।भृंगराज एक ऐसी बूटी है जो बालों के विकास के लिए बेहद उपयोगी मानी जाती है। वैसे भारत के अलग अलग इलाकों में इसे भांगराज और भीमराज के नाम से भी बुलाया जाता है पर वो नाम कम प्रचलित हैं। भृंगराज की एक खूबी ये भी है कि आवाज़ की नकल कर ये अपने संगी पक्षियों के समूह में घुलमिल जाता है और भोजन की साझा खोज में हिस्सा लेता है।

हिमालय से लेकर दक्षिणी प्रायद्वीप के जंगलों में आप इससे मुलाकात जरूर कर पाएंगे। दुधवा और पेंच अभ्यारण्य के बाद केरल के वायनाड में मेरी इससे ये तीसरी मुलाकात थी। आशा है अगली बार किसी चमकती सुबह में इसके दर्शन हो पाएंगे।

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