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मूर्ख महिलाओ की ओछी सोच…
1)पुरुष हमारी तरक्की से जलते है इसीलिए वो हमें आगे बढ़ता नहीं देख सकते
उत्तर–अगर पुरुष औरतो की तरक्की से जलते तो आज भी औरत घर में चूल्हा सुलगा रही होती,न की ऑफिस में कंप्यूटर चला रही होती औरत को हवाई जहाज हो या साइकिल चलाना,कंप्यूटर हो या कैलकुलेटर चलाना,तलवार हो या बन्दूक चलाना… सब मर्दों ने ही सिखाया है क्रिकेट का बैट पकड़ना और टेबल टेनिस हो या फुटबॉल खेलना या फिर शतरंग खेलना… सब कुछ पुरुषो ने सिखाया है…अगर पुरुष महिलाओ की तरक्की से जलते तो क्या आज महिलाये ये सभी कार्य कर पाती???
2) दहेज़ लेना पुरुष प्रधान समाज का सूचक है
उत्तर– जब कोई नयी दुल्हन घर पर आती है तो उसको देखने आस पास का महिला मंडल आता है फिर सास कहती है–कुछ भी दहेज़ नहीं लायी…तब दूसरी महिला कहती है–अरे मेरी बहु तो 5 लाख दहेज़ लेकर आई थी और एक किलो सोना भी…. उसके बाद बाक़ी औरते लंबी लंबी फेंकना शुरू करती है..अरे मेरी तो 10 लाख ..मेरी तो इतना उतना ..इत्यादि..
ससुर को बहु से कोई समस्या नहीं,पति को पत्नी से कोई समस्या नहीं लेकिन ननद को भाभी से,सास को बहु से और देवरानी को जेठानी से या जेठानी को देवरानी से इसी बात की समस्या है की दहेज़ में जो उनको साडी मिली वो सस्ती थी..घटिया क्वालिटी की…
अरे वाह… अब भी क्या पुरुष दहेज़ मांगते है?? पूरी दुनिया गुनाह करे और अंत में दोष पुरुष के ऊपर मढ़ दिया जाता है ईमानदारी से बताये ये औरते की “जब इनके भाई या बेटे की शादी हुयी और इनको लाखो के गहने दहेज़ में मिले तब क्या इन औरतो ने विरोध किया था?? और आज कितनी औरते विरोध करती है???
3)शादी के बाद लड़के तो माँ बाप की सुनते नहीं।
उत्तर– अगर शादी हो जाए और लड़का अगर माँ की सुने तो वो”माँ के पल्लू वाला” कहलाता है और अगर बीबी की सुने तो ” जोरू का गुलाम”
सच तो ये है की स्त्री की मानसिकता ये रहती है की हुकूमत तो सिर्फ मेरी चलनी चाहिए और इसी मानसिकता के साथ एक घर “नारी वर्चस्व” का कुरुक्षेत्र बन जाता है.. जहां उद्देश्य और कोई नहीं बल्कि अभागा लड़का होता है… जिसको हासिल करने के लिए या अपना गुलाम बनाने के लिए माँ और पत्नी रणक्षेत्र में कूद पड़ती है ।।
कई बार माँ की गलती होती है और बेटा माँ को समझाता है लेकिन माँ समझना ही नहीं चाहती।।बेटा सोचता है की अगर कुछ और दिन माँ के साथ रहा तो कही मेरी प्राणप्यारी आत्महत्या न कर ले ..कही मेरी माँ जेल न चली जाए..इसीलिए बेटा सभी की भलाई के लिए राम बनकर सीता को अपनी कैकेयी जैसी माँ से दूर कर देता है…तब समाज कहता है ” कितना पापी बेटा है,माँ को ही भूल गया”
और अगर पत्नी दुष्टा हो तब बेटा ये सोचता है की इसका त्याग कर देता हु..जैसे ही बेटा ये सोचता है वैसे ही पत्नी देवी 498a ठोंक देती है और पूरा परिवार अंदर..और अगर वो सभी की भलाई के लिए पत्नी को लेकर अलग हो जाए तो भी ऊँगली उसी पर उठेगी…
निष्कर्ष—मुर्ख औरतो की बातो को एक कान से सुनकर दुसरे कान से निकाल दो…क्योंकि उन बातो में न सिर होता है और न पैर….
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