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मन से मन का बन्धन!!!
दिल से दिल का रिश्ता
देखते सुनते... जाने कब और.. कैसे..
खुद की आत्मा से बँध जाता मन..
और मौन... मिल से ज़ाती हैं दो रुहें...
और बंध से जाते हैं...
और फिर... प्रेम हो ज़ाता है.. बस हो ज़ाता है...
एक दूसरे के.. मन से मन को..
शायद इस बंधन में...
कोई अग्नि साक्षी नहीं होती..
कोई हवन नहीं होता..
कोई सात वचन नहीं कहता...
पर सबसे करीब होता है ये..
कुछ अलग सा अहसास है य़े..!!!
न बांधने की चाहत.. न छूटने का मन...
बस ऐसा है य़े.. मन से मन का बंधन!!
शुभसंध्या दोस्तों

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