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ॐ• 'मूरख हृदय न चेत जौं गुर मिलहिं विरंचि सम॥'
भले ही ब्रह्मा के समान ज्ञानी गुरु क्यों न मिल जाएँ, मूर्ख को ज्ञान नहीं होता।
"शठ का सुधार सत्संग से सम्भव है, परन्तु यदि शठता, 'मूर्खता' में बदल जाए तो सुधार बड़ा कठिन ही नहीं 'असम्भव' हो जाता है क्योंकि, ब्रह्म के समान गुरु मिलने पर भी मूर्ख का सुधार नहीं हो सकता। जब कभी ऐसा काल, ऐसी परिस्थिति आए कि शठता घेर ले तो तुरंत सत्संग करना चाहिए। पारस के स्पर्श से कितनी ही पुरानी धातु (लोहा) हो, स्पर्श करते ही स्वर्ण बन जाता है। वैसे ही चौरासी लाख योनियों के कुसंस्कार सत्संग से समाप्त हो जाते हैं। कुविचार दूर हो जाते हैं।"

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