आज ऐसे ही बैठे बैठे अतीत को याद कर रहा था। करीब 30 से 35 साल पहले की बातें। आपमें से कितने लोगों को याद है कि गर्मियों की छुट्टियों में मात्र 50 पैसे में 24 घंटों के लिए कॉमिक्स किराए पर मिलती थीं। हालांकि पूरी किताब की कीमत करीब 8 से 10 रुपए ही होती थी पर इतना पैसा सिर्फ़ अमीर दोस्तों के पास ही होता था। तो भईया हमारी हैसियत तो 50 पैसे की ही थी। तो किराए की ही बहुत थी। चाचा चौधरी, साबू, राका, बिल्लू, पिंकी, रमन, बांके लाल, सुपर कमांडो ध्रुव, नागराज और न जाने कितनी किताबों पर मैंने न जाने कितने पैसे खर्च किए होंगे। शायद सौ, दो सौ या जाने पांच सौ। पर ये भी बहुत थे।
उस वक्त सुपर कमांडो ध्रुव और नागराज की कहानियों में जो रोमांच होता था ,वो आज कल की थ्रिलर सीरीज को देख कर भी नहीं आता। उसके चित्रों के अंदर घुस कर उसी दुनिया में चले जाते थे। नागराज के साथ मैं ख़ुद कितनी बार विदेश गया हूं, जब उसे किसी समस्या के लिए कई बार अमेरिका के राष्ट्रपति ने बुलाया था। थोड़ांगा तो पकड़ने के लिए तो मैं दक्षिण अफ्रीका भी घूम आया था नागराज के साथ मन ही मन में ।ऐसी न जाने अनगिनत रोमांचक कहानियों के अनगिनत पात्र मेरे जीवन के अंग रहे हैं। और आज भी यादों में ताज़ा हैं।
किसी को याद है कि एक अंक को पढ़ कर अगले हफ़्ते तक दूसरे अंक के लिए इंतजार करते थे। अच्छा नया अंक 50 पैसे में नहीं मिलता था। किताब वाले अंकल नए अंक के 2 रुपये लेते थे। और हम, अंकल हमेशा आपसे ही लेते हैं, बोल के डेढ़ रुपए में पटा लेते थे। 50 पैसे बचा के और नया अंक उसी दिन पढ़ कर लगता था कि प्रधानमंत्री बन गए हों।
हफ्तों तक का इंतजार, चीजों की अहमियत और छोटी छोटी सी खुशियों में ही जीवन जी लेने की कला सीख जाने से हमारी अंदर वो सहनशीलता वो सौम्यता वो खुशमिजाज़ी अब तक जिंदा है। और शायद हम जब तक जिंदा रहेंगे ये सब भी हमारे अंदर जिंदा रहेगी।
आज के बच्चों के पास कहीं ज्यादा संसाधन, सुविधाएं और न जाने क्या क्या है। पर नहीं है तो बस संतुष्टि। पता नहीं कैसे आएगी। आयेगी कि भी नहीं। आ जाए तो शायद दुनिया का भला हो जाए।
जो मैंने कहा अगर आप भी अपने अतीत की उन यादों को महसूस करते हैं तो कमेंट करके ज़रूर बताइएगा।
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