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मंगल कसेरा जी की वॉल पर Mann Jee की पोस्ट :
ऐतिहासिक अपानवायु
(मेरे शब्दों में अलीफ़ लैला की एक कहानी)
यमन के कौक़बान शहर में अबू हसन नामक एक अमीर रण्डुआ सौदागर रहता था। भरी जवानी में अबू की बेगम फ़ौत हो गई थी- लिहाज़ा अबू हसन विधुर का जीवन व्यतीत कर रहा था। दौलत अच्छी ख़ासी थी- और बद्दू जाती के इस आदमी की तो ख़ैर माशा अल्लाह जवानी अभी ठंडी ना पड़ी थी। अबू को एक अदद बेगम की दरकार थी। इसके चलते अबू ने यमन की अनेक कुटनियों, बुढ़िया खूसटो को खिला पिला अपने पक्ष में कर लिया था। नतीजन एक कुटनी ने उसका निकाह एक कमसिन नाज़नीं से तय करवाया। निकाह वाले दिन अबू हसन ने एक बड़ी दावत दी।
निकाह के वलीमा में अबू हसन ने शहर के तमाम फ़क़ीर, उलेमा, दोस्त, दुश्मन, रिश्तेदार, ससुरालियो आदि को बुलाया। खाने में पाँच प्रकार के पुलाव, दस प्रकार के शरबत, मेवा से भरे भुने हुए अनेक दुंबे और एक पूर्ण भुना हुआ ऊँट परोसा गया। मनोरंजन के लिए भांड नकलची वेश्या आदि भी बुलाई गई। सबने खूब खाया पिया, खुशगप्पियाँ उड़ाई और आनंद मनाया। अबू हसन ने भी खूब डट कर भोजन किया।
निकाह की रस्म हेतु जब क़ाज़ी ने अबू को दुल्हन के निकट बुलाया तो शहर के समस्त बड़े लोग हस्तियाँ काजी के पास आ गये। क़ाज़ी ने अबू से पूछा- क़ुबूल है?
इस से पहले अबू “क़ुबूल है “कह पाता, खाये पिये अगहाये अबू ने एक अपनी तशरीफ़ से बमविस्फोट किया- एक लंबवायु कर्णफड़क अपानवायु छोड़ दिया- गैस पास कर दी। इस अपानवायु का स्वर सब ने सुना, इसकी बू सबने सूँघी। सब मेहमानों में कानाफूसी और खिलखिला कर हँसना शुरू हो गया। शर्मसार अबू हसन अपना मुँह छिपाए वहाँ से भाग निकला। एक गधे पर सवार हो अबू ने शहर के बाहर का रास्ता लिया और लहेज़ शहर जा पहुँचा जहां हिंदुस्तान के मालाबार जाने के लिए एक पानी का जहाज़ तैयार था। अबू उस जहाज़ में सवार हो हिंदुस्तान जा पहुँचा और वहाँ के काफिर बादशाह की ख़िदमत में लग गया।
इस काफिर बादशाह का वो दस बरस मुलाजिम रहा- बड़ी जतन से अबू हसन ने बादशाह की सेवा की। बादशाह का वो प्रिय मुसाहिब भी बन गया किंतु इन दस बरस में अबू को लगातार अपने वतन यमन की याद सताती रही। फिर एक दिन अबू ने फिर पानी का जहाज़ पकड़ा और वापस अपने शहर जाने का ख़्याल बनाया।
यमन के बंदरगाह पहुँच अबू ने एक फ़क़ीर, दरवेश का रूप धारण किया। वो अपने शहर में पहचाना नहीं जाना चाहता था। अबू ने सोचा यदि उसके शहर वाले उसके अपानवायु वाले कांड को भूल गए होंगे तो वो अपनी बेगम और अपने घर जाएगा अन्यथा नहीं। दरवेश के रूप में अबू अपने शहर में घुसा और बाहर बनी एक झोपड़ी के पास बैठ सुस्ताने लगा। झोपड़ी में एक दस साल की लड़की अपनी अम्मी से बात कर रही थी।
लड़की- अम्मी जान, मेरा जन्म किस साल हुआ था? अगर आप बता देंगी तो नजूमी मेरा भविष्य बाँच देगा।
अम्मी- अरी लड़की, तेरा जन्म उस बरस हुआ था जिस बरस अबू हसन ने अपने वलीमा में वो ऐतिहासिक विस्फोट किया था।
ये सुन अबू हसन के होश फ़ाख्ता हो गए- अबू बुदबुदाया- लाहोल विला, ये स्याले शहर वाले तो मेरे अपानवायु को तारीख़ बना कर याद रखें हुए है।
ये बोल अबू ने वहाँ से दुड़की लगाई और पानी के जहाज़ में बैठ वापस हिंदुस्तान की राह ली और अपना शेष जीवन काफिर बादशाह की ख़िदमत में लगाया। कम से कम हिंदुस्तान में अबू हसन को एक पदोडे के रूप में तो कोई ना जानता था।
नोट-कहानी रिचर्ड बर्टन की एक हज़ार एक अरबियन नाइट्स अर्थात् अलीफ़ लैला से ली गई है!