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यूं तो हर घर में तरह तरह के मसाले आते रहते हैं पर उनके फल और वृक्षों से शायद ही कभी हम सब रूबरू हो पाते हैं। पहली बार मसालों के कुछ पौधों को मैंने अपनी केरल यात्रा में देखा था। कच्ची इलायची का तो स्वाद भी तभी चखा था और काली मिर्च के फलों का प्रथम दर्शन भी तब हुआ था।
इस बार कुन्नूर गया तो वहां Dolphin's Nose के पास इस फल को बिकता देखा। किसी ने बताया कि ये जायफल है।
वैसे क्या आपको पता है कि इस फल से एक नहीं पर घर में इस्तेमाल होने वाले दो मसाले बनते हैं? ये बात मुझे वहां से लौटने के बाद पता चली। तुरंत इसकी ली गई इस तस्वीर को खंगाला और सारा माजरा समझ आ गया।
दरअसल जायफल की जो गुठली होती है उसके चारों ओर लाल रंग का कवच होता है। ये जालनुमा बाहरी आवरण मसाले के रूप में इस्तेमाल होता है और इसे जावित्री कहते हैं।
जायफल की गुठली को पहले सुखाया जाता है। फिर उसे लकड़ी के हथौड़े से तोड़कर उसके बीज को निकल लिया जाता है। इसी को पीसकर जायफल का मसाला बनता है। इसीलिए तो कहा जाता है कि यात्राएं हमें बहुत कुछ नया सिखाती हैं।
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