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रात के लगभग 12 बजे हैं, गैरसैंण पहुंचा हूं, सन्नाटा है, रामलीला ग्राउंड के पास में उतरा हूं, वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की मूर्ति यहां पर है मैंने उन्हें प्रणाम किया, अचानक मेरे मन के कोने से आवाज उठी कि क्या हम उत्तराखंड के लोग वीर चंद्र सिंह गढ़वाली जी की भावना का सम्मान कर रहे हैं या वास्तव में हम, वह जो चाहते थे उस दिशा में आगे बढ़ रहे हैं? पिछले 2 साल से लगभग गैरसैंण, भराड़ीसैंण, उत्तराखंड के राजनीतिक एजेंडे से बाहर है। मैं भी इधर नहीं आ पाया, लेकिन गैरसैंण में लगभग साढ़े सात, 8 साल होने को आ रहे हैं, विकास के नाम पर एक ईंट नहीं लगी है।
भाजपा ने हमेशा गैरसैंण को गैर समझा, यह अलग बात है कि गैरसैंण ने हमेशा भाजपा को शक्ति दी है।
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