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#काशी_महिमा
येषां हृदि सदैवास्ते काशी त्वाशी विषाङ्गद ।
संसाराशिविषविषं न तेषां प्रभवेत्क्वचित् ।।
गर्भरक्षामणिमर्न्त्रः काशीवर्णद्वयात्मकः ।
यस्य कण्ठे सदा तिष्ठेत्तस्याकुशलता कुतः ।।
(#काशीखण्ड्)
जिनके हृदय मे #काशी सदैव विद्यमान रहती है, उनको संसार रूपी सर्प कभी नही डंस सकता।
#काशी ऐसा दो अक्षर का मंत्र गर्भरक्षा की मणि है, जिसके कंठ मे विराजमान है फिर उसकी अकुशलता कहाँ है? (काशी का नाम जो जपते रहता है उसका कुशल होता है दुबारा गर्भ मे नही आना पड़ता)
जो कोई #काशी नामक दो अक्षरों का अमृत पी लेता है, वह निर्जरा अवस्था को त्याग कर अमृत ही हो जाता है।
जिसने इन दो अक्षरों की #काशी का नाम अपने कानो मे डाल लिया, उसे फिर कभी गर्भविषयिणी वार्ता नही सुननी पडती (काशी नाम जपने से मनुष्य गर्भवास से मुक्ति पा जाता है)
जिसके माथे पर एक बार भी दैवयोग से #काशी की धूल भी वायु वेग से उड़कर पड़ जावे तोह उसका मस्तक भी चंद्रकला से सुशोभित होजाता है। (काशी की धूल की महिमा इतनी है की अगर वह उड़ कर किसी के माथे का स्पर्श भी करले तोह उसके भाग्य मे सारुपय मुक्ति मिल जाती है)
प्रसंगवस भी एक बार भी यह आंनदकानन (#काशी)जिनके नेत्र पथ पर पड़ जाता है, वे न तोह फिर संसार मे उत्पन्न ही होतें है और न शमशान ही को देखते है।
जो कोई उठते बैठते सोते और जागते अथवा किसी भी अवस्था मे हो #काशी इस महा मन्त्र का जाप करता है, वह भय से रहित होजाता है(काशी को महामंत्र की संज्ञा दि गयी है और किसी भी अवस्था मे इसी जपा जा सकता है)
जिसने #काशी इस बीज मन्त्र के दोनों अक्षर को अपने हृदय मे बैठा लिया उसके सभी कर्म बीज निर्बीज होजाते हैं। (हमारे सभी कर्म जिसका फल हमें भोगना हैं, वह सब कर्म खत्म हो जातें हैं सभी कर्म खत्म होने पर ही मोक्ष मिलता है )
जो कोई #काशी_काशी ऐसा कहीं पर भी जपता रहता है, वह जहाँ भी रहता है, वहीं पर उसके आगे मुक्ति प्रकाशित होती है। (काशी नाम का बीज एवं महामंत्र जिसको कहीं पर भी जपा जा सकता है, काशी के बाहर भी रह कर हम काशी नाम जप सकतें है, ऐसा करने से मुक्ति हमारे नजदीक ही रहती है)
काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी काशी

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