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ओवैसी ने शपथ समारोह के समय जय फिलिस्तीन कहा और हंगामा हो गया। हंगामा होना भी वाजिब था क्योंकि भारत माता की जय से उन्हें उतनी ही आपत्ति है जितनी मोदी को एक जालीदार टोपी पहनने से है। दोनों व्यक्ति सिर्फ इन्हीं दो बातों से बचकर निकल लेते हैं।

2019 में ओवैसी ने अल्लाहु अकबर का नारा संसद में पहली बार लगाया था और इस बार जय फिलीस्तीन। मैंने ओवैसी के राजनीतिक इतिहास को जानने की कोशिश की तो यह ज्ञात हुआ कि ओवैसी 2004 से लोकसभा सांसद हैं और पहले ऐसी कोई जयकार नहीं हुई।

संसद में पहली बार 2014 में धार्मिक नारे गूंजे और 2019 में भाजपाइयों ने हिंदुराष्ट्र से लेकर जयश्री राम, राधा–कृष्ण इत्यादि जाने क्या–क्या जोड़ अथवा बोल आए। याद रहे "हिन्दूराष्ट्र कहना असंवैधानिक है"। बहुमत आने पर सत्ता कैसे बेलगाम होती है 2019 उसका उदाहरण है।

ओवैसी शपथ लेने उठे तो जमकर हूटिंग हुई और जय श्रीराम के नारे चिढ़ाने के लिए लगाए गए। ओवैसी खुद उसी श्रेणी के लेकिन दुसरी तरफ के नेता हैं जो धर्म को सदा तवज्जो में रखते आए और उन्होंने अल्लाहु अकबर कहकर सबको उल्टा सुलगा दिया। इतना करते ही सारी लाइमलाइट भी लूट ले गए।

इस बार भी उनका पूरा प्लान था कि सारी जगह उनकी ही चर्चा हो इसलिए उन्होंने जय भीम, जय मीम, जय तेलंगाना और जय फिलिस्तीन कह दिया। सब जगह उनकी चर्चा है। भाजपा को वही टक्कर दे सकते हैं और सारे भाजपाई उनको ही टक्कर देती है। दोनों विचारधारों में अधिक अंतर नहीं है बस पहचान भिन्न है।

होना यह चाहिए था कि लगाम सभी पर लगे। कोई बहुसंख्यक विचार के नाम पर उदंडता करे तो अल्पसंख्यक अनुसरण करेगा और यदि अल्पसंख्यक की गलती अनदेखी होगी तो बहुसंख्यक के मन में असंतोष पनपेगा। अभी वर्तमान के जो धूम झगड़े चल रहे हैं वह इतिहास के इन्हीं घटनाओं पर केंद्रित है।

हम धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक, समतावादी देश के समर्थक हैं। हमें हर गैर जरुरी नारों और जयकारों से आपत्ति है। भारत की सदा जय हो और अराजकों की सदा क्षय हो ऐसी उम्मीद के साथ इस देश को बेहतर बनाना है जो नारों, जयकारों से संभव नहीं है। अपने हों या बेगाने सबके लिए लगाम की आवश्यकता है।

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