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नारी तू नारायणी! पहचान स्वयं को! जीवन की सुंदर बगीया में अपने हुनर से पहचान कायम करो।
नारी! तुम केवल श्रद्धा हो विश्वास-रजत-नग पगतल में,
पीयूष-स्रोत बहा करो जीवन के सुंदर समतल में।
देवों की विजय, दानवों की हारों का होता युद्ध रहा,
संघर्ष सदा उर-अंतर में जीवित रह नित्य-विरुद्ध रहा।
आँसू से भींगे अंचल पर मन का सब कुछ रखना होगा -
तुमको अपनी स्मित रेखा से यह संधिपत्र लिखना होगा।"

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