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॥ श्रीहरिः ॥
अप बल ,तप बल और बाहुबल ,चौथा है बल दाम , सूरकिशोर कृपा से सब बल ,हारे को हरिनाम।
आज कलिकाल मे जीव को यज्ञ, कर्मकांड के आडम्बर मे नहीं पड़कर केवल और केवल नाम जप करना चाहिए,यही मुक्ति का साधन है। तुलसी बाबा ने रामचरित मानस मे 'कलियुग मे केवल नाम को ही आधार बताया है,सभी ग्रंथो ने कलिकाल मे केवल भगवंन्नाम को ही भगवतप्राप्ति का साधन बताया है। भक्तो को जो नाम प्रिय लगे राम, कृष्ण, हरि, शिव का जप करना ही भव बंधन से मुक्त करा सकता है। भगवान् कृष्ण ने गीता जी मे अर्जुन को कहा है सभी यज्ञो मे जप यज्ञ मै हुँ
*सच्चा पंडित वही है जो नित्य हरिको भजता है और यह देखता है कि सब चराचर जगत्में श्रीहरि ही रम रहे हैं।*
*वेदोंका अर्थ, शास्त्रोंका प्रमेय और पुराणोंका सिद्धान्त एक ही है और वह यही है कि सर्वतोभावसे परमात्माकी शरणमें जाओ और निष्ठापूर्वक उसीका नाम गाओ।
*उस बड़प्पनमें आग लगे जिसमें भगवद्भक्ति नहीं।*
*मूलका सिंचन करनेसे उसकी तरी समस्त वृक्षमें पहुँचती है। पृथक्के फेरमें मत पड़ो। जो सार वस्तु है उसे पकड़े रहो।*
*पतिव्रताके लिये जैसे पति ही प्रमाण है, वैसे ही हमारे लिये नारायण हैं।*

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