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#सुनो..
हाँ बिलकुल ऐसे ही तो होते हैं कुछ पुरुष...!!
विरह में सिर्फ स्त्रियाँ ही नही सूखती
सूख जाते हैं पुरूष भी..
होंठ पर पड़ जाती हैं पपड़िया
लटक जाते हैं गाल..
झाड़ियो सी फैल जाती हैं दाढ़ी
नहीं सुहाती रंगीन कमीजे..
आंखों मे समा जाता है अथाह पीलापन
अनगिनत काली रातों में
जलती है खाली आँखे..
जलाया है सूरज,बुझ जाती हैं सुबह
बंजर हो जाती छाती
जम जाता ह्रदय का महासागर
हाथों में नहीं बचता स्पर्श का एहसास ।
सुप्रभात दोस्तों

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