1977 में ज्योति बसु मुख्यमंत्री बना। लगभग उसी समय मैंने समाचार पत्र पढ़ने आरंभ किए। पहले हिंदी, बाद में अंग्रेज़ी सीख ली तो अंग्रेज़ी भी।
ज्योति बसु का नाम सदैव हर पत्रिका, समाचार पत्र में अत्यधिक आदर के साथ लिखा जाता था। जैसे राजऋषि या महान स्टेट्समैन। पश्चिम बंगाल को मॉडल स्टेट बताया जाता था: वामपंथ आ गया है, सब शोषण समाप्त हो गए है, चारों ओर ख़ुशहाली है, कभी साम्प्रदायिक दंगे नहीं होते है, क्यूँकि दंगे तो साम्प्रदायिक पार्टी करवाती है व उसका तो बंगाल में अस्तित्व ही नहीं है। 1996 में तो ये व्यक्ति लगभग प्रधानमंत्री ही बन गया था। मुझे लगा देश के हाथ से अच्छा अवसर निकल गया।
यद्यपि जीवन उससे पहले मुझे बंगाल ले जा चुका था। लेकिन अब मुझे लगता है कि हम स्वयं वास्तविक जीवन में भी वही देखने लगते है जो मीडिया हमें दिखा रहा होता है: मैंने भी वही देखा: कितनी सस्ती बस यात्रा है, कंडक्टर दो पैसे भी लौटाता है टिकट के शेष, ट्राम भी है, अत्यंत सस्ती है। एक ठेकेदार ने बताया भी था कि जब हमें ठेका मिलता है तो उसी शाम हमें लोकल काड़र के घर जाना होता है। वह हमें एक लिस्ट देता है जिन्हें हमें साइट पर नौकरी देनी होती है। हम उन्हें बुलाते है व कहते है कि आप की मज़दूरी आपके घर पहुँच जाएगी, आप कभी साइट पर मत आना, "साइट पर आएँगे तो न स्वयं काम करेंगे, न करने देंगे।" मुझे लगा कि एक शोषक बोल रहा है।
समय बदला। Red pill खा ली मैंने। क्यूँ, नहीं पता।
जो अब पता है वो ये कि ज्योति बसु एक हत्यारा था। उसके काल में बंगाल में रोज़ पाँच राजनीतिक हत्या होती थी, यानि साल में लगभग सत्रह सौ हत्याये। याने गुजरात दंगो से अधिक हर वर्ष। उसने बंगाल में सोलह हज़ार उद्योग बंद कराए। वह डायरेक्ट एक्शन डे वाले दिन मुस्लिम लीग के मंच पर था। उसके काल में दंगे इसलिए नहीं होते था क्यूँकि हिंदू घरों में दुबके रहते थे, चाहे उन पर कोई भी अत्याचार हो जाए। 1968 जब वह सरकार में था, एक सांस्कृतिक कार्यक्रम पर हमला हुआ व सैकड़ों महिलाओं को उठा लिया गया। फ़ैक्टरी में मैनेजरो व मालिकों की हत्याये हुई। देश का सबसे ओद्योगिक रूप से विकसित राज्य बंगाल वीरान हो गया। एशिया का कभी सबसे व्यस्त पोर्ट, कलकत्ता, बर्बाद हो गया।
लेकिन मीडिया उसे आज भी राजऋषि ही कहता है।
मीडिया के स्वामी वे ही लोग है जिनकी ज्योति बसु हत्या करवाता था, व अगर कभी दिल्ली पर उसका अधिकार हो जाता तो वह मीडिया को समाप्त ही कर देता। लेकिन मीडिया क्यूँ ऐसे झूठ बोलता है?
ज्योति बसु उदाहरण है कि हिंसा कैसे अच्छे लोगों को चुप करा देती है। वह हिंसा का प्रयोग करता था राजनीति में, मीडिया भी चुप रहा, बुद्धिजीवी उसके पालतू हो गए। ममता बनर्जी ने अंतत ज्योति बसु के पाले हत्यारो को ऑफ़र दिया: मेरे साथ आ जाओ, इससे भी अच्छा लाइसेन्स दूँगी हिंसा का। तब तिलिस्म टूटा ज्योति बसु का।
मीडिया व बुद्धिजीवीयो ने जो झूठ बोले ज्योति बसु को देवता बनाने के लिए, उससे भारत में सदैव समाजवादियों का शासन रहा व लाखों करोड़ों लोग भूख से मरे, व करोड़ों लोग जानवरो से बुरा जीवन जी रहे है आज भी। 1950 में हम एशिया के सम्पन्न राष्ट्रों में से थे। आज हम दुनिया के सबसे सम्पन्न राष्ट्र हो सकते थे।
ज्योति बसु के लिए मीडिया के झूठ से स्पष्ट है कि झूठ कितना शक्तिशाली होता है। हम अपने वास्तविक जीवन को भी मीडिया की आँखो से देखना आरम्भ कर देते है। ज्योति बसु के जीवन से स्पष्ट है कि हिंसा कितनी सफल होती है। हम झूठ ही जीना आरम्भ कर देते है।
अच्छे लोगों द्वारा हिंसा का त्याग दुनिया के साथ सबसे बड़ा अन्याय है। हिंसा, झूठ, व मीडिया के गठजोड़ को समाप्त करना ही हम सबके जीवन का लक्ष्य होना चाहिए।
इंटर्नेट का आविष्कारक ही कल्कि अवतार था।