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🙏🙏जय सियाराम जी🙏🙏
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को साहिब सेवकहि नेवाजी।
आपु समाज साज सब साजी॥
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निज करतूति न समुझिअ सपनें।
सेवक सकुच सोचु उर अपनें॥
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भावार्थ:-भरत जी कहते हैं कि ऐसा सेवक पर कृपा करने वाला स्वामी कौन है, जो आप ही सेवक का सारा साज-सामान सज दे अर्थात उसकी सारी आवश्यकताओं को पूर्ण कर दे और स्वप्न में भी अपनी कोई करनी न समझकर (अर्थात मैंने सेवक के लिए कुछ किया है, ऐसा न जानकर) उलटा सेवक को संकोच होगा, इसका सोच अपने हृदय में रखे ।

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