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यूपी से समाचार आ रहे हैं कि योगी के विरोध में विधायकों को उकसाया जा रहा है। यह कार्य उत्तर प्रदेश के किसी पूर्व/वर्तमान उपमुख्यमंत्री द्वारा ‘ऊपर’ से आ रहे निर्देशों के आधार पर हो रहा है।

किसी तरह से चुनाव में हुई ‘हार’ का पूरा भार योगी आदित्यनाथ पर डालने के उपक्रम चल रहे हैं। ‘ऊपर’ के लोग राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया का भी पूर्ण ‘सदुपयोग’ कर रहे हैं।

आज के संदर्भ में देखा जाए तो भले ही पार्टी में नरेन्द्र मोदी के उत्तराधिकार पर संशय हो, पर जनता ने वह पद 2019 से ही योगी को दे रखा है। आज भी, राष्ट्रीय परिदृश्य में योगी की छवि को कोई क्षति नहीं पहुँची है।

उत्तर प्रदेश की राजनीति और पार्टी की आंतरिक राजनीति चाहे जो भी हो, भाजपा के अगले नेता के रूप में जो स्वीकार्यता योगी की है, वह अभी किसी अन्य नेता की नहीं है। हालाँकि, हर बड़े नेता की लक्ष्य प्रधानमंत्री पद होता है, पर प्रारब्ध ही अंतिम चुनाव करता है।

यदि चुनाव में 71 और 63 सीटों की जीत का श्रेय कोई लेता है, तो 33 का श्रेय भी वहीं जाना चाहिए। प्रश्न यह होना चाहिए कि टिकट किसने बाँटे थे? दागी लोगों को पार्टी में ला कर, छः महीने में टिकट क्यों दिया गया?

हर नेता के उत्थान की राह में षड्यंत्र अपने ही लोग करते हैं। जो भी विधायकों को उकसा रहे हैं, वो यह भूल जाएँ कि योगी के चेहरे के बिना भाजपा 2027 में वापसी कर लेगी। योगी को यूपी से हटाने का प्रभाव आपको बिहार से ले कर कर्नाटक तक दिखेगा। अपने भविष्य की अंत्येष्टि हेतु लकड़ियाँ इकट्ठा करना बंद कीजिए (पूर्व/वर्तमान) उपमुख्यमंत्री जी!

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