कविता...
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मैंने कई बार ये सोचा
क्यों लिखती हूँ मैं कविता?
जब मेरी कविताएँ भर नही पाती
फुटपाथ पर बैठे
किसी भूखे बच्चे का पेट
जब कोई कविता बन नहीं पाती छत
किसी गरीब के लिए
जहाँ मिल सके
सर्दी,गर्मी और बारिश में उसे आश्रय
क्या जरूरत है फिर इन कविताओं की!
एक रात फुटपाथ के जरा नज़दीक से
गुजरते हुए सुना मैंने
एक माँ को अपने भूख बिलखते हुए
बच्चों से कहते हुए–
"सुनो,मैं तुम्हें एक कविता सुनाती हूँ
तुम्हें नींद आ जाएगी।"
उस रात घर लौट कर
मैंने लिखी एक और कविता ।
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