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फिल्म का हीरो होता तो लाखो लाइक मिल जाते लेकिन देश के होनहार बेटे के लिए लाइक मांगने पड़ते है , बड़े दुःख की बात है 😢💔🙏
बचपन में एक गंभीर हादसे के कारण अपना बायां हाथ खोने के बावजूद, देवेंद्र ने अपने सपनों का पीछा नहीं छोड़ा और एथलेटिक्स में अपना करियर बनाने का दृढ़ संकल्प लिया।
देवेंद्र का जन्म 10 जून 1981 को राजस्थान के चूरू जिले के झाझर गांव में हुआ था। सात साल की उम्र में एक पेड़ पर चढ़ते समय उन्हें बिजली का झटका लगा, जिससे उनका बायां हाथ पूरी तरह से जल गया और डॉक्टरों को उसे काटना पड़ा। इस हादसे के बावजूद, देवेंद्र ने हार नहीं मानी और अपनी शारीरिक सीमाओं को चुनौती देने का निर्णय लिया।
देवेंद्र झाझरिया ने 2004 में एथेंस पैरालंपिक में भाला फेंक (Javelin Throw) में स्वर्ण पदक जीतकर इतिहास रच दिया। यह पहला मौका था जब किसी भारतीय पैरालंपिक एथलीट ने स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद, उन्होंने 2016 के रियो पैरालंपिक में फिर से स्वर्ण पदक जीता, जिससे वह दो बार पैरालंपिक स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय बन गए।
उनकी सफलता की कहानी यहीं नहीं रुकी। देवेंद्र ने 2013 में IPC World Championships में स्वर्ण पदक जीता और 2015 में एशियाई खेलों में भी स्वर्ण पदक हासिल किया। 2021 के टोक्यो पैरालंपिक में उन्होंने रजत पदक जीतकर अपनी दृढ़ता और उत्कृष्टता का प्रमाण दिया।
देवेंद्र झाझरिया को उनकी उत्कृष्टता के लिए कई पुरस्कार मिले हैं, जिनमें 2012 में अर्जुन अवार्ड, 2017 में पद्म श्री और 2021 में खेल रत्न शामिल हैं। उनकी प्रेरणादायक यात्रा और उपलब्धियाँ उन सभी के लिए एक प्रेरणा हैं जो जीवन में किसी भी चुनौती का सामना कर रहे हैं।
देवेंद्र झाझरिया की कहानी न केवल एथलेटिक्स के क्षेत्र में बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में यह सिखाती है कि सच्ची मेहनत, दृढ़ता और संकल्प से किसी भी बाधा को पार किया जा सकता है। उनकी यह कहानी आज के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो किसी भी मुश्किल को चुनौती देने का साहस रखते हैं।

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