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शब्द और मौन *
** शब्द हमें दुनिया से जोड़ते है और मौन हमें खुद से जोड़ता है ! माना कि शब्द हमें अज्ञान के रेगिस्तान को पार करवाने में मदद करते हैं परन्तु आत्मानुभव की प्रथम सीढी है मौन !*
* भीतर का मौन वाणी के नियंत्रण के लिये बहुत जरूरी है ! जैसे ही वाणी अनुशासित होती है हमारा मुँह प्रतिकूल शब्द फेंकना बंद कर देते हैं !*
* शब्द भी भीतर से उछाल मारते हैं और बाहर आकर निंदा के रूप में बिखर जाते हैं! ऐसे शब्दों के रुख को अपनी ओर मोड़ देंगे तो हमें आत्म विश्लेषण का अवसर मिल जाऐगा !*
*शब्दों की भीड़ एवं विचारों के जमघट ने इंसानों के आत्मा की छवि को धूमिल कर दिया है ! अपनी आत्म छवि निखारने हेतु चिंतन करना कि "मेरा मूल रूप शांत है" ! छिछोरे मन और शब्दों की भीड़ ने उसे अशांत बना दिया ! जीवन में मौन को स्थान देनेके लिये हमें "ॐ शांति" शब्द का प्रयोग बार-बार करना चाहिये !*
*यदि किसी ने कड़वे वचन बोल दियो तो मन में कहो "ॐ शांति" !*
* तनाव है नींद नहीं आ रही तो बोलो "ॐ शांति" !*
*"ॐ शांति" शब्द हमे स्वयं से मिलाता है, इससे मन गहरा होता है
और शब्दों की कल्याणकारी ऊँचाई भी बढ़ती हैं !
सुप्रभात दोस्तों

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