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शाक्त कभी पञ्च देव की निन्दा नहीं करता। शाक्तागम में पञ्च देव की उपासना का विधान है। सूर्य, शिव, गणेश एवं विष्णु की पूजा शक्ति के साथ की जाती है।
कुछ ऐसे लोग जो किसी सम्प्रदाय से उपदेशित नहीं होते, एक इष्ट को पकड़कर अन्य देव की निन्दा करते हैं। जबकि ये गलत है। सभी देव एक ही तत्त्व के भिन्न भिन्न स्वरूप हैं। उपासना में इष्ट मुख्य रहते हैं, शेष का स्वरूप गौण रहता है।
आज से विष्णु भगवान शयन को जा रहे हैं। आज देवशयनी एकादशी है। इस समय आषाढ़ में प्रकृति ऋतुमति होती है और उसके पश्चात गर्भ धारण करती है। ये चातुर्मास उसके गर्भ धारण के दिन हैं। वर्षा ऋतु प्रकृति का गर्भ धारण का समय है।
पृथ्वी विष्णु पत्नी हैं। इस समय वो जल धारण करती हैं। नारायण जल के अधिकारी देव हैं। इस समय वो जल से पृथ्वी की सर्जनात्मक शक्ति का प्रणयन करते हैं।
इस समय चातुर्मास में संन्यासी भी भ्रमण त्यागकर एकांतिक होकर अपनी साधना उपासना करते हैं। भू देवी और श्री हरि जब सर्जन में लीन होते हैं तब उनकी योगमाया शक्ति ही सृष्टि का ध्यान रखती है।
चातुर्मास सर्जन का समय तो है ही, साथ ही लय एवं प्रलय का भी है। अति वृष्टि होने पर प्रलय ही उपस्थित होता है। ऐसे में इस चातुर्मास में महाकाल की उपासना से बढ़कर क्या हो सकता है।
समस्त संसार के विष को पीने वाले विषपायी भगवान भोलेनाथ के अभिषेक का मास श्रावण इसी चातुर्मास में आता है।
ये चातुर्मास उपासना के लिये एक और प्रकार से उत्तम है। मेरे मतानुसार इस समय वर्षा के कारण जगत का बाह्य व्यापार थोड़ा अवरुद्ध होता है। मानव निर्मित कोलाहल में न्यूनता आती है और प्रकृति के स्वर में वृद्धि होती है। ऐसे में प्रकृति के स्वर को सुनते हुए उपासना में बैठने पर मन प्रकृति से एकाकार होता है।
इस समय का सदुपयोग करें।
जय अम्बे जय गुरुदेव।

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