12 w - Translate

योगेश्वर श्रीकृष्ण जब धर्म के बारे में कहते हैं कि सब धर्मों को त्याग और मुझ एक की शरण में आ,, तब वे आपके बाहरी #सामाजिक दायित्व की बात करते हैं,, आप पिता हैं तो आपका पितृ धर्म है संतान के प्रति,, आप बेटे हैं तो पुत्र धर्म है,, आप छात्र हैं तो विद्यार्थी या शिष्य का जो धर्म होता है उसका पालन करना है,, तो वे कह रहे हैं कि कौन तेरा दादा है कौन बेटा है कौन भाई है,, तू ये सब धर्म छोड़ और मैं जो कहता हूं पहले उसे सुन फिर कर,,
महर्षि #कणाद जब धर्म की बात करते हैं तो वे पदार्थ के धर्म की बात करते हैं,, जैसे अग्नि का धर्म है ताप और प्रकाश, अगर अभिव्यक्त है जैसे चूल्हे में यज्ञ में बल्ब में दिए में तो ताप भी देगी और प्रकाश भी,, अनाभिव्यक्त है जैसे शरीर में या जठराग्नि में तो सिर्फ छुने पर ताप देगी,, जल का धर्म है शीतलता,, वो किसी भी हालत में शीतल ही रहता है, तुम लक्कड़ आदि लगाकर गैस पर चढ़ाकर गर्म कर भी दोगे तो सहायक कारण लक्कड़ आदि हटते ही जल फिर अपने स्वाभाविक धर्म शीतलता में आ जाएंगे,, इससे अन्य एक और महान व्याख्या महर्षि कणाद ने धर्म की दी है वह फिर कभी,,
ऐसे ही और भी अनेकों व्याख्या हैं,, लेकिन आज जो कहना है सीधे उसपर चलते हैं,, आपके एक मनुष्य के रूप में आंतरिक विकास के लिए आपकी चेतना के ऊर्ध्वरोहण के लिए महाराज #मनु ने धर्म को जरूरी बताया,, शिष्यों ने पूछा कि धर्म कैसा होता है हमे कैसे पता चलेगा,,?? तो महाराज मनु ने धर्म के दस लक्षण बताए वहां पर,,
दसों को यहां लिखने की जरूरत नहीं मैं पहला लक्षण लिख देता हूं,, धैर्य,, यानी जब आप मनुष्य होने की यात्रा पर चलते हैं तो आपके अंदर ये दस लक्षण होने चाहिएं तभी माना जायेगा आप धर्म पर चल रहे हैं,, तो प्रथम है #धैर्य,,

image