बहेलिए की तरह
दबे पाँव आया सुख
मन को छला और फाँस गया...
बहुरूपिये की तरह
ठाठ से आया दुःख
मन को छुआ और यहीं रह गया...
मैंने दोनों ही भोगे
पर दुःख की अवधि अधिक रही।
भोगी गयी इन दोनों अवधियों के
निपट एकान्त क्षणों में
मैंने महसूस किया,
"दुःख,
ईश्वर से जुड़ने का सबसे सच्चा और सरल माध्यम है।"