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ढलती शाम में अंधेरा जैसे जैसे बढ़ता गया, बाहर से मिट्टी की सौंधी खुशबू आने लगी, मुझे एहसास हुआ कि शायद बूंदे बरस रही हैं। मैं भाग कर बालकनी में पहुंची, मौसम ने मुस्कराते हुए मेरा स्वागत किया...मानो कह रहा हो; आ गई तुम...तुम्हारा ही इंतज़ार था!
मैं मासूम, मौसम की इस चाल को भांप न पाई, और आराम से खड़े होकर चाय पीने लगी। बस तभी तेज़ तेज़ हवाएं चलने लगी। मेरा कप मेरे हाथों से छिटक कर न जाने 11 th फ्लोर से किधर गया? मैं समझ गई कि मौसम को बेईमान यूँही नहीं कहा जाता... मैंने एक गुस्से वाली नज़र बादलों पर डाली और उसको आँखों से बताया कि मैं अब जा रही हूँ।
बस फिर क्या था...सरसराती हवाओं के साथ बादल बरसे हैं, तो बस क्या ही बरसे....हवाओं की तेज शाsssss शुuuuuuu ने और तेज़ बरसती बारिश की बूंदों ने मौसम को एक अलग ही लेवल पर पहुंचा दिया।
मैं पीछे की ओर दौड़कर, शीशे के दरवाजे को बन्द करने की भरकस कोशिश करने लगी...लेकिन तेज़ चलती हवाओं ने इसे चेलेंज की तरह लिया! बस फिर क्या था...मैं एक तरफ दोनो हाथ से स्लाइडिंग दरवाजे को बन्द कर रही हूँ, वहीं तेज़ चलती हवाओं ने दरवाजे को 100 टन भारी कर दिया, और हम दोनों की जुगलबंदी चल ही रही थी कि अचानक लाइट चली गई। गहराते अंधेरे, तेज़ बारिश और रौद्र हवाओं के बीच मेरे बालों में लगा स्क्रंची दूर कहीं उड़ गया....और अब मैं खुले बालों को बांधने लगूं तो हवा जीतने लगी....और बालों को खुला छोड़ दिया तो लगा कि, बस हॉरर स्टोरी यूँही बनती होंगी!
बस किसी तरह दरवाजा बंद तो हो गया पर लाइट अब भी नहीं हैं...डीजी भी नहीं चल रहा और अंधेरा गहराता जा रहा हैं! इसी बीच शीशे वाले गेट से दिख रही... सामने वाली सोसायटी की बालकनी में खड़ी एक आंटी न जाने क्यों थर थर कांपती सी नज़र आ रही हैं!
अब मैं बढ़िया सी चाय पीते हुए सोच रही हूँ कि आंटी को यह मासूम मुखड़ा बताया जाए...या उनके लिए यह किस्सा यूँही भूतिया शाम में भूत से मुलाकात टाइप किस्सा बनकर रहने दिया जाए!
बाकी तो...आल इज वेल

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