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मानस का रोचक प्रसंग:
माता जानकी का माँ पार्वती से वर मांगना।।।
धनुष यज्ञ से पहले कुलरीति अनुसार माता जानकी को उनकी माता ने सखियों के साथ गौर पूजन को भेजा ।
तेहि अवसर सीता तहँ आई।
गिरिजा पूजन जननि पठाई॥
वहाँ जा कर माता जानकी ने मन में अधिक प्रेम लिए माता पार्वती की स्तुति की।
पूजा कीन्हि अधिक अनुरागा।
निज अनुरुप सुभग बरु मागा॥
और अपने अनरूप सुभग वर मांगा कि हे माँ जो मेरे लिए उत्तम हो वो वर मुझे दिलवा देना ।
उसी समय राम जी उसी पुष्प वाटिका में गुरुदेव की पूजा के लिए फूल लेने आए थे। उनको देख कर सीता जी की एक सखी भागते हुए गौरा मंदिर पहुंची और बोली कि दो राजकुमार बागिया देखने आए हैं उनकी सुंदरता कैसे कहूँ।
आँखों ने देखा है उनकी वाणी नहीं है , वाणी को कहना है उसकी आँखें नहीं हैं।
सारी सखी सीता जी को उन दोनों राजकुमारों को दिखाने को ले गईं।
और इनके कंगन , करधनी और पायल की आवाज राम जी ने सुनकर सीता जी की ओर देखा तो वह करुणानिधान भी कुछ बोल न सके।
देखि सीय शोभा सुखु पावा।
हृदयँ सराहत बचनु न आवा॥
और फिर लक्ष्मण जी से बोले भाई ये ही हैं जनकनंदनी ।
देखो कैसे इस बगिया में रौशनी करती फिर रही हैं।
पूजन गौरि सखीं लै आईं।
करत प्रकासु फिरइ फुलवाईं॥
फिर सीता जी ने भी उन्हे देखा तो चकित रह गईं । उनकी सुध बुध खो गई।
उन्होंने आँखें बंद कर लीं तो एक सखी ने चुटकी लेते हुए कहा "सीता गौर मैया का ध्यान फिर कर लेना अभी आँख खोल कर इन्हे देख ले"।
बहुरि गौरि कर ध्यान करेहू।
भूपकिसोर देखि किन लेहू॥
माता सकुचा गईं तो एक सखी और चुटकी ली "आज चल रहे हैं कल फिर इसी टाइम इसी जगह या जाएंगे " "same time same जगह "।
पुनि आउब एहि बेरिआँ काली।
अस कहि मन बिहसी एक आली॥
सीता जी को पता था पिता तो मानेंगे नहीं तो गौरा मैया ही कुछ कर सकेंगी , गईं भागी भागी फिर से मंदिर में ।
सोच मैंने तो निज अनुरूप वर मांगा है । अब ऐसा न हो कोई कह दे गोरी लड़की के साथ सँवारे लड़के की जोड़ी क्या जमेगी ।
ऐसा न हो गौरा मैया किसी और से जोड़ी बनवा दें तो पहले तो एक लाइन मे स्तुति की थी और अबकी बार पति, पिता और बच्चे सब याद दिलाए,
सबका नाम लिया ।
जय जय गिरिबरराज किसोरी।
जय महेस मुख चंद चकोरी॥
जय गजबदन षडानन माता।
जगत जननि दामिनि दुति गाता
मैया पिछले वाले प्रोग्राम में चेंज है
अबकी बार निज अनुरूप नहीं वही वाला चाहिए ।
अब स्तुति करने वाली जगदंबा सुनने वाली जगदंबा तो सुनवाई में देर कैसी । यहाँ सीता जी ने चरण पकड़े हैं वहाँ गौरा मैया की मूरत मुस्करा गई और कह दिया "वही मिलेगा जो साँवरा सलोना है जिस में मन रच बस गया "।
"मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो"।
और इतना सुनकर माता सीता बड़े प्रसन्न मन से गौरा मैया को बार बार पूज कर घर को गईं ।
कुंवारी कन्या को सुखद वैवाहिक जीवन के लिए ये स्तुति पढ़नी चाहिए ।
मानस बालकाण्ड , 234-236
जय जय गिरिबरराज किसोरी। जय महेस मुख चंद चकोरी।।
जय गज बदन षड़ानन माता। जगत जननि दामिनि दुति गाता।।
नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाउ बेदु नहिं जाना।।
भव भव बिभव पराभव कारिनि। बिस्व बिमोहनि स्वबस बिहारिनि।।
पतिदेवता सुतीय महुँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस सारदा सेष।।
सेवत तोहि सुलभ फल चारी। बरदायनी पुरारि पिआरी।।
देबि पूजि पद कमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे।।
मोर मनोरथु जानहु नीकें। बसहु सदा उर पुर सबही कें।।
कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं। अस कहि चरन गहे बैदेहीं।।
बिनय प्रेम बस भई भवानी। खसी माल मूरति मुसुकानी।।
सादर सियँ प्रसादु सिर धरेऊ। बोली गौरि हरषु हियँ भरेऊ।।
सुनु सिय सत्य असीस हमारी। पूजिहि मन कामना तुम्हारी।।
नारद बचन सदा सुचि साचा। सो बरु मिलिहि जाहिं मनु राचा।।
मनु जाहिं राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर साँवरो।
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो।।
एहि भाँति गौरि असीस सुनि सिय सहित हियँ हरषीं अली।
तुलसी भवानिहि पूजि पुनि पुनि मुदित मन मंदिर चली।।
जानि गौरि अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे।।

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